कविता : अनोखा सफर
अनोखा सा है सफर
बड़ी लम्बी है डगर
मंजिल है बेहद दूर
न कुछ भी आता नजर !
खामोश तने से ये पेड़
तन्हा सी ये सड़कें
हर और चुप्प्पी छाई
है कैसा यह मंजर !
यह जिन्दगी की राह
होती नहीं इतनी आसान
चाहे हो कैसा भी आलम
चलना पड़ता है मगर !
खूबसूरत भी है बहुत
ये राहें जिन्दगी की
इन रास्तों पर साथ हो
गर कोई अपना हमसफर !
— सोनिया गुप्ता