कथा साहित्यलघुकथा

जिंदगी

“भाई ! जरा चौक वाले डॉक्टर के क्लीनक चलना है।” कहते हुए वो दोनों बाते करते हुए रिक्शे में बैठे गए।

“इनकी बातो से लग रहा है जैसे पति पत्नी से सहमत नहीं है पर इसका मन रखने के लिए साथ चला आया है।” यही सब सोचते हुए रिक्शेवाले ने रिक्शे को चौक वाले रस्ते पे डाल दिया।

धूप से बचने के लिए एक हाथ में छाता और दूसरे हाथ से छाती को दबाये साथ बैठे पति को लक्ष्य कर पत्नी कह रही थी। “अब उम्र के ढलते दौर में जब बीमार शरीर हर घड़ी परमात्मा के बुलावे के डर के साथ जी रहा है, ऐसे में भी हर पत्नी की तरह मैं भी जग से सुहागन ही विदा होना चाहती हूँ लेकिन….।”

“वो ठीक है, पर देख बुधिया! मेरी बीमारी पर अब पैसा लगाना पानी में रेत डालने जैसा ही है।” पति ने उसकी बात को बीच में ही काट दिया।

“कैसी बात करते हो जी! डॉक्टर ने कहा है कि इस दवाई से तुम बिलकुल ठीक हो जाओगे।” उसने पति को हौसला देने की कोशिश की।

“कैसी दवाई कैसा डॉक्टर ? अब अमरता का वरदान तो लेकर आये नहीं, ये तो बस तेरे प्यार का अमृत है बुधिया, जो मुझे जिंदा रखे हुए है।” पति के होठों पर फीकी हँसी आ गयी।

रिक्शेवाला भी अपनी किसी बात को याद कर मुस्कराने लगा।

इधर बुधिया भी पति की बात पर मुस्कराई पर जल्दी ही गंभीर हो गयी। “न जी ये तो हमारा मोह है जो हम जिंदगी से जुड़े बैठे है।”

“मोह ही सही लेकिन हम बूढ़ो का साथ बना रहे तो अच्छा, वर्ना बच्चों द्वारा छोड़े हम बूढ़ो में से एक साथी के चले जाने के बाद तो जिंदगी श्राप ही बन जानी है।” पति भी गंभीर हो गया।
……… करड़…करड़… करता रिक्शा अचानक ही रुक गया।

“क्या हुआ ?” पति-पत्नी ने सम्मलित आवाज में पूछा।

“कुछ नहीं बाऊजी, जरा चैन उतर गयी है।” रिक्शावाला नीचे उतर चैन चढ़ाने में लग गया।

“हां भई !” रिक्शेवाले की ओर देखते हुए पति कहने लगा। “दोनों तरफ की साइड में से किसी एक की भी कड़ी उतर जाए तो रिक्शा बेचारा चलेगा भी कैसे?”

“हाँ बाऊजी ! जिंदगी और रिक्शे में शायद यही फर्क होता है।” कहता हुआ रिक्शे वाला अनायास ही फूट फूट कर रोने लगा।

विरेंदर ‘वीर’ मेहता

विरेन्दर 'वीर' मेहता

विरेंदर वीर मेहता जन्म स्थान/निवास - दिल्ली सम्प्रति - एक निजी कंपनी में लेखाकार/कनिष्ठ प्रबंधक के तौर पर कार्यरत। लेखन विधा - लघुकथा, कहानी, आलेख, समीक्षा, गीत-नवगीत। प्रकाशित संग्रह - निजि तौर पर अभी कोई नहीं, लेकिन ‘बूँद बूँद सागर’ 2016, ‘अपने अपने क्षितिज’ 2017, ‘लघुकथा अनवरत सत्र 2’ 2017, ‘सपने बुनते हुये’ 2017, ‘भाषा सहोदरी लघुकथा’ 2017, ‘स्त्री–पुरुषों की संबंधों की लघुकथाएं’ 2018, ‘नई सदी की धमक’ 2018 ‘लघुकथा मंजूषा’ 2019 ‘समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशस्त्र’ 2019 जैसे 22 से अधिक संकलनों में भागीदारी एवँ किरदी जवानी भाग 1 (पंजाबी), मिनी अंक 111 (पंजाबी), गुसैयाँ मई 2016 (पंजाबी), आदि गुरुकुल मई 2016, साहित्य कलश अक्टूबर–दिसंबर 2016, साहित्य अमृत जनवरी 2017, कहानी प्रसंग’ 2018 (अंजुमन प्रकाशन), अविराम साहित्यिकी, लघुकथा कलश, अमर उजाला-पत्रिका ‘रूपायन’, दृष्टि, विश्वागाथा, शुभ तारिका, आधुनिक साहित्य, ‘सत्य की मशाल’ जैसी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। सह संपादन : भाषा सहोदरी लघुकथा 2017 (भाषा सहोदरी), लघुकथा मंजूषा 3 2019 (वर्जिन साहित्यपीठ) एवँ लघुकथा कलश में सम्पादन सह्योग। साहित्य क्षेत्र में पुरस्कार / मान :- पहचान समूह द्वारा आयोजित ‘अखिल भारतीय शकुन्तला कपूर स्मृति लघुकथा’ प्रतियोगिता (२०१६) में प्रथम स्थान। हरियाणा प्रादेशिक लघुकथ मंच द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता (२०१७) में ‘लघुकथा स्वर्ण सम्मान’। मातृभारती डॉट कॉम द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता (२०१८) ‘जेम्स ऑफ इंडिया’ में प्रथम विजेता। प्रणेता साहित्य संस्थान एवं के बी एस प्रकाशन द्वारा आयोजित “श्रीमति एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान” 2018 (कहानी प्रतियोगिता) और 2019 (लघुकथा प्रतियोगिता) में प्रथम विजेता।