कविता

उठो जवानों टूट पड़ो

उठो जवानों टूट पड़ो ‘ फिर दुश्मन ने ललकारा है
घात लगाकर उरी में ‘ धोखे से हमको मारा है

देख के अर्थी जवानों की ‘ फिर आज हिमालय रोया है
बहनों ने भाई तो ‘ मांओं ने भी बेटा खोया है

बड़ा दुष्ट है पाक नहीं नापाक देश ये सारा है
उठो जवानों टूट पड़ो ‘ फिर दुश्मन ने ललकारा है

मच्छर सी औकात है इसकी फिर भी ऐसी हरकत है
बस कश्मीर मुझे मिल जाये यही तो इसकी हसरत है

कश्मीर को तो भूल ही जाओ ‘ अपने मुल्क की सोचो तुम
सिंध बलूच ना रहे तुम्हारे ‘ यह भी सोचो समझो तुम

जो कब्जाया है तुमने ‘ वो भी कश्मीर हमारा है
उठो जवानों टूट पड़ो फिर दुश्मन ने ललकारा है

उठो जवानों टूट पड़ो ‘ फिर दुश्मन ने ललकारा है
घात लगाकर उरी में धोखे से हमको मारा है

यह कश्मीर तो ना देंगे हम वह कश्मीर भी ले लेंगे
इस धरती मैया की खातिर जान भी अपनी दे देंगे

देश की खातीर मरने वालों ‘ मौत ना तुमको आएगी
गली गली में चर्चे होंगे ‘ गीत ये दुनिया गाएगी

कदम कदम तुम आगे बढ़ लो पीछे हिन्द ये सारा है
उठो जवानों टूट पड़ो फिर दुश्मन ने ललकारा है

खौल उठा है लहू देश का ‘ तेरी इस कुरबानी पे
नाज है हमको फख्र बड़ा है तेरी मस्त जवानी पे

धोखे से जो हमला करते ‘ वे कायर ही होते हैं
डर डर कर ही जिन्दा रहते और डर कर ही मरते हैं

नानी याद दिला दो उसको ‘ ये पैगाम हमारा है
उठो जवानों टूट पड़ो फिर दुश्मन ने ललकारा है

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।