छल !
छल!
तुम यहीं हो,
यहीं कहीं, मेरे आस पास
आहट वह हल्की सी
तुम्हारी ही तो थी,
मौन हुए शब्द सारे
मौन हुए द्वंद
मौन हुई चेतना,
पल भर में।
झरने लगीं आंखें,
बहने लगी अश्रु धारा
बहने लगा वज़ूद, व्याकुल नदी सा
विलीन होने को जिस में
तुम्हीं तो थे वह,
तुम्हीं तो थे?
पर अगले ही पल,
प्रभु यह कैसा छल!
प्रभु यह कैसा छल!
प्रभु यह कैसा छल!!
– बलवंत सिंह