कविता

“कुंडलिया”

मानव के मन में बसी, मानवता की चाह
दानव की दानत रही, कलुष कुटिलता आह
कलुष कुटिलता आह, मुग्ध पाजी पाखंडी
वंश वेलि गुमराह, कर दें नराधम दंडी
कह गौतम चितलाय, पाक में घर घर दानव
भारत राह दिखाय, बनो मत बैरी मानव।।

महातम मिश्र, गौतम गिराखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ