कविता : आजादी
मै जब अपनी आजादी की
चर्चा करती हूँ
तो मै सरहदों पर लगी
कांटेदार तार को
सरकते या टूटते नहीं देखती
न ही ग्लोब पर उकेरी
लकीरों को
गडमड होते देखती हूँ
मेरी आजादी
हथियारों के जखीरों से शुरू होकर
इन्सानी लाशों पर झूलते
जीत के झंडे पर नही लहराती
मेरी आजादी तो
मेरे घर से निकलने
और वापिस लौटने
तक के सफर मे विचरते
आत्म-सम्मान मे ही है
मेरी यह आजादी
एक बहुत बडी आजादी की
आधारशिला है…!!
— रितु शर्मा