बोधकथा : कौवे
एक समय की बात है सयाने कौवों की बस्ती में खलबली मच गयी , हुआ यूँ की उन्हीं सा दिखने वाला कौवों की बस्ती का सरपंच बन गया और उसने कौवों की नकेल कसनी शुरू करदी । कौवे अपने में से सबसे सयाने को उस से मुकाबला करने भेजते और जो भी जाता उसकी नाक में नकेल डाल दी जाती ।
एक बुजुर्ग कौवे ने सलाह दी- ‘बच्चो, ऐसा करो उसे बदनाम करना शुरू कर दो , उस से होगा ये कि सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी ।’ बस सभी ने कांव कांव करना शुरू किया लेकिन जिसकी भी छत की मुंडेर पे कांव कांव करते, वहीं से भगाये जाते और कौवे अपना सा मुँह ले के रह जाते !
तभी एक दिन एक राज़ खुला तो सब कौवों का कलेजा मुँह को आ गया ! असल में कौवे जिसे अपना जैसा समझ रहे थे वो सरपंच कौवा था ही नहीं उसकी जगह कोयल ने अपनी सूझबूझ और होशियारी से कौवों की नकेल कस दी थी।
— अंशु प्रधान