ग़ज़ल
सच कहती अफसाना हूँ
खुद में एक जमाना हूँ
रोम-रोम पुलकित होगा
गा तू खुलकर गाना हूँ
जो मेरी सांसों में है
उसके लिए बेगाना हूँ
आज निगेहबानी में हूँ
कल के लिए निशाना हूँ
फिर राजा कहलाऊंगा
अंधों में मैं काना हूँ
— मंजुला उपाध्याय ‘मंजुल’