कविता

घायल मन!

मन हार गया धन जीत गया !
धन हार गया जग जीत गया !! जो मन ने कहा मैं कर न सका,
धन दौलत से घर भर न सका !
जीवन के अंतिम छण आये ,
अब पाृण हमारे घव राये !!
क्या फिर से पुनर्जन्म होगा ,
क्या फिर से घायल मन होगा !!
मैं हाथ पसारे आया भी ओर हाथ चला गया !!
मन हार गया धन जीत गया !
धन हार गया जग जीत गया !!

—  सन्तोष पाठक 

संतोष पाठक

निवासी : जारुआ कटरा, आगरा