……खातिर
हसरत थी कोई आता हमें भी मनाने की खातिर
क्या हमारा ही दिल मिला है सताने की खातिर
यहाँ कोई भी नहीं है मेरी फितरत से अनजान
रहता है हर शक्स बेचैन मुझे पाने की खातिर
दिल के ज़ख्मों को मेरे वो ही समझ सकता है
कोशाँ हो जो हरपल रोतों को हँसाने की खातिर
जूनून ऐसा होना लाजमी है हर दिल में दोस्तों
दुनिया को मुख्तलिफ कुछ कर दिखाने की खातिर
कोई फल्सफा नहीं ये तजुर्बा हैं इस ज़िंदगी का
बहुत कुछ खोना पडता है,थोड़ा पाने की खातिर
— राज रंजन
(कोशाँ : कोशिश करने वाले, मुख्तलिफ : अलग / दूसरे प्रकार का, फल्सफा : तर्क / दलील / दर्शनशास्त्र)