नवरात्र पर दो रचनायें
नवरात्र पूजा
घनाक्षरी छंद (कवित्त)
महागौरी, कूष्माण्डा माँ, पूजूँ मैं धूप दीप से, ढोल नगाड़े बाजे से, घर में पधराऊँ।
कृपा करो कात्यायनी, शैलपुत्रि, महालक्ष्मी, कालरात्रि काली माता, मैं चोला चढ़वाऊॅँ।
महिषासुर मर्दिनी, चंद्रघंटा महामाया, तुलजा भवानी तेरा, माँ शृंगार कराऊँ।
माँ दुर्गे स्कंदमात हे सिद्धदात्रि वर दो माँ, महिमा मैं नित तेरी, जीवन भर गाऊँ।
( घनाक्षरी छंद 16-15 मात्राओं का वार्णिक छंद है। इसमें 8 वर्णों के तीन जोड़े व एक जोड़ा 7 वर्णों का होता है। मात्रााओं का बंधन नहीं, किंतु लय में 16वें वर्ण पर यति (विश्राम) हाेता है तथा इसमें 31वाँँ वर्ण गुरू का आना आवश्यक है। इसे कवित्त भी कहते हैं तथा मनहरण छंद भी कहा जाता है। )
माँँ दुर्गा पर मुक्तक
अब न डरें आ गई है, माँ दुर्गा अब धाम।
असुरों का अब मूल से, करने काम तमाम।
अवतारित होंगे प्रभू, धरती पर ले रूप,
रावण को संहारने, अब पुरुषोत्तम राम।। 1।।
दुर्गा के नवरूप हैं, पूजें सुबहो शाम।
भक्ति करें सौहार्द से, मिलिए सुबहो शाम।
माँ दर्शन में दिखेंगे, नित्य नये नवरूप,
अब नवरात्र मनाइये, सुख से सुबहो शाम।।2।।