जन्म दिन विशेष – विनोद खन्ना
आज से 71 वर्ष पहले 06 अक्टूबर 1946 को पेशावर (पाकिस्तान) में जन्में “विनोद” जी का फ़िल्मी सफर जब शुरू हुआ, जब वे एक पार्टी के दौरान ‘सुनील दत्त जी’ से मिले और यही से उनके जीवन का रुख बदल गया और अपने पिता के बिजनेस सँभालने की जगह वे एक अभिनेता बनने के रास्ते पर चल निकले।
ये फ़िल्म थी ‘मन का मीत’ जिसमें विनोद जी ने बतौर सहनायक काम किया और वर्ष 1968 में प्रदर्शित इस के हिट होने के बाद विनोद जी को ‘आन मिलो सजना’ ‘मेरा गांव मेरा देश’ ‘सच्चा झूठा’ जैसी फिल्मों ने बतौर एक सफल खलनायक बॉलीवुड में स्थापित कर दिया। लेकिन उनके अंदर का अभिनेता अभी इतने से संतुष्ट नही था और वे किसी बेहतर अवसर की तलाश में थे।
उनकी ये तलाश पूरी हुयी ‘गुलजार’ जी से मिलकर, जिनकी फ़िल्म ‘मेरे अपने’ से उन्होंने सफलता का एक और आगाज किया। ये एक महज संयोग ही था कि गुलजार जी भी ने बतौर निर्देशक करियर की शुरूआत इसी फ़िल्म से की थी। छात्र राजनीति पर आधारित इस फिल्म में अहम भूमिका मीना कुमारी जी ने निभाई थी लेकिन फिल्म में विनोद खन्ना और शत्रुध्न सिन्हा के बीच का संघर्ष और आपसी संवाद देखने लायक थे।
गुलजार जी के साथ ही वर्ष 1973 में विनोद जी ने एक बार फिर फिल्म ‘अचानक’ में काम किया और ये फ़िल्म उनके करियर की एक सुपरहिट और यादगार फिल्म साबित हुई। फिल्म की खासियत ये थी कि इसमें कोई गीत नहीं था।
इसके बाद वर्ष 1974 में, फ़िल्म ‘इम्तिहान’ और वर्ष 1977 में फिल्म ‘अमर अकबर ऎंथोनी’ ने विनोदजी को सफल अभिनेताओं के शीर्ष पायदान पर ला खड़ा किया। मनमोहन देसाई के निर्देशन में बनी यह फिल्म (अ अ अ ) तीन भाइयों के ‘खोया पाया’ फार्मूले पर आधारित थी जिसमें उनके साथ शीर्ष अभिनेता अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर भी थे।
वर्ष 1980 में आई फिल्म ‘कुर्बानी’ ने विनोद जी को सफलता के उच्चतम शिखर पर ला खड़ा किया। फिरोज खान जी के निर्माण और निर्देशन में बनी इस फिल्म के लिए विनोद जी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया।
अस्सी के दशक में ही जब विनोद जी को सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के सम्मुख उनके सिंहासन का दावेदार माना जा रहा था, ठीक ऐसे ही समय में विनोद जी ने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह लाखों दिलों को तोड़ कर अपने गुरु आचार्य रजनीश के आश्रम में जाकर एक संयासी का जीवन अपना लिया।………..
और सात वर्ष के लंबे अरसे के बाद वर्ष 1987 में विनोद जी ने अपनी फ़िल्मी पारी को एक बार फिर से फिल्म ‘इंसाफ’ से शुरू किया और सफलता का एक और अध्याय लिखा। वर्ष 1988 में आई फ़िल्म ‘दयावान’ को समीक्षकों द्वारा विनोदजी के करियर की उत्कृष्ठ फिल्मों में से एक माना गया, हालांकि व्यवसायिक तौर पर फ़िल्म बहुत अधिक सफल नही हो सकी।
हालिया कई फिल्मों में विनोद जी की सलमान खान के पिता की निभाई भूमिका में, फ़िल्म ‘वांटेड’ और ‘दबंग’ काफी चर्चा में रही। फिल्मों के अलावा विनोद जी ने “छोटे पर्दे” पर भी अपने अभिनय का चमत्कार ‘महाराणा प्रताप’ और ‘मेरे अपने’ जैसे धारावाहिकों में दिखाया है।
करीब 20 वर्ष् पहले (1997 से) विनोद जी ने समाज सेवा को अपना लक्ष्य मान राजनीति में प्रवेश किया था और भारतीय जनता पार्टी के निशान के साथ गुरदासपुर से चुनाव लड़कर लोकसभा सदस्य बने। बाद में केन्द्रीय मंत्री के तौर पर भी विनोद जी ने कार्यभार संभाला। वर्तमान में भी वे लोकसभा में भाजपा के टिकट पर गुरदासपुर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे है।
आज कल विनोद जी अपने स्वास्थ्य कारणों से कुछ कम सक्रिय है लेकिन फिर भी हर संभव प्रयास से वे अपने करोड़ो प्रशंसको के दिलों में राज करने के साथ अपनी दोनों भूमिकाएं ‘नेता और ‘अभिनेता’ को बखूबी निभा रहे है।
उनके जन्म दिन के अवसर पर, अनगिनित चाहने वालों की ओर से उन्हें स्वस्थ्य और सुखी जीवन की कामना के साथ हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।
विरेंदर ‘वीर’ मेहता