गीतिका/ग़ज़ल

गुजरा जमाना

याद आता है मुझे गुजरा जमाना
हम भी बांके से नौजवान सजीले थे
तुम भी कुछ कम नहीं थी ऐ वफ़ा की देवी
फुल सी सुन्दर तेरे नैन नशीले थे

नैन से नैन मीले दिल ने फिर करार किया
तेरे संग रहने की चाहत ने बेक़रार किया
रात दिन रहती थी तसवीर तेरी नज़रों में
तब ये जाना की सनम हमने तुमसे प्यार किया

जाम पी नज़रों से हम यूँ नशे में झूम गए
झील सी आँखों की गहराई में हम डूब गए
लडखडाये कदम जो मेरे कभी भूले से
थाम कर देकर सहारा मेरे महबूब गए

तेरी चाहत अभी तक है मुझमें
देख कर तुझको जी नहीं भरता
प्यास बढ़ती है जीतना पीता हूँ
चाहूँगा तुझको जब तक नहीं मरता

तुमसे ही है मेरे साँसों का अब रिश्ता नाता
हसरत है कि हर इक पल तू मेरे साथ रहे
बेवफा हो जाएँ जब सांस मेरी धोखा दें
चाहता हूँ कि तू मिसाल ए वफादार रहे

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।