बचपन सुहाना
आता है फिर याद बचपन सुहाना
वो बारिश के पानी में कश्ती बहाना
कभी खेलना कभी पढ़ना पढ़ाना
वो छुट्टी की खातिर बहाने बनाना
वो लंगड़ी वो खो खो वो गुल्ली वो डंडा
कभी दोस्तों संग वो लट्टू घुमाना
वो हँसना वो रोना कभी मुस्कुराना
कभी दोस्तों से ही पंजा लड़ाना
वो झगड़े वो शिकवे कुछ पल के मेहमां थे
अभी रूठना और अभी मान जाना
वो बचपन के दिन भी कितने हसीं थे
ना कोई फिकर थी ना कोई फ़साना
कबड्डी कभी ‘ कभी दौड़ना पकड़ना
कभी गेंद से ही निशाने लगाना
वो भीगना मचलना वो गीरना फिसलना
कभी खुद ही उठना फिर आंसू बहाना