धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

विजया-दशमी : भारतीय वीरों की शौर्य गाथाओं को यद्का करने का पर्व

ओ३म्

आज 11 अक्तूबर, 2016 को विजयादशमी व दशहरे का पर्व देश भर में मनाया जा रहा है। विजयादशमी का दिन श्री रामचन्द्र जी द्वारा आसुरी शक्तियों के प्रतीक राक्षस राज रावण को युद्ध में पराजित कर उसका वध करने और वहां विभीषण के नेतृत्व में सुशासन स्थापित कर 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटने से भी जोड़ा जाता है। हमें लगता है कि यदि रामचन्द्र जी द्वारा इस दिन रावण के वध विषयक ऐतिहासिक प्रमाण न भी मिलें तो भी इस पर्व पर श्री रामचन्द्र जी, बाली, हनुमान जी, अंगद, श्री कृष्ण व अन्य भीष्म, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, कर्ण सहित चाणक्य व चन्द्रगुप्त मौर्य आदि का स्मरण कर अपने अन्दर उनके जैसी वीरता और शौर्य को जाग्रत करने के पर्व के रुप में इस दिवस को मनाना अनुचित नहीं अपितु सार्थक एवं लाभकारी होने के साथ आवश्यक भी है। हम तो यह भी अनुभव करते हैं कि आज के दिन हमें अंगे्रजों की गुलामी के शासन में भारत के वीर शहीदों व स्वतन्त्रता सेनानियों सहित नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, महर्षि दयानन्द, श्यामजी कृष्ण वर्मा, वीर सावरकर, पं. राम प्रसाद बिस्मिल, शहीद चन्द्र शेखर आजाद, शहीद भगत सिंह सहित आजादी के बाद चीन व पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध में भारत माता के लिए शहीद सभी सैनिकों व वीरों को जिन्होंने हमें पाकिस्तान के विरुद्ध सन् 1965, 1971 तथा कारगिल युद्ध सहित विगत दिनों पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हमारे सैनिकों के सर्जिकल स्ट्राइक कारनामें को स्मरण कर उन्हें भी श्रद्धांजलि दी जानी चाहिये। तभी भारत की युवा पीढ़ी को देशहित व कर्तव्य का बोध हो सकता है और आने वाले समय में देश की एकता व अखण्डता की रक्षा के लिए हम समर्थ व शत्रुओं का समूल नाश करने में सक्षम हो सकते हैं। देश के शत्रुओं के प्रति दया और अंहिसा की नीति का त्याग कर उन्हें कुचलने की नीति बनाने पर विचार करना भी हमें आज प्रासंगिक एवं आवश्यक प्रतीत होता है। इसके कारण हमने अभी तक अपने सैनिकों को शहीद करते रहकर भारी हानि उठाई है। अब इसका भविष्य के लिए अन्त हो जाना चाहिये और देश के शत्रुओं के विरुद्ध यथायोग्य का व्यवहार व प्रथम प्रहार का निर्णय करना चाहिये। आज  हमारे शत्रु देश से बाहर ही नहीं अपितु देश के अन्दर भी अनेकों हैं जिन्हें हमें परास्त कर भारत को उच्च नैतिक व उत्तम वैदिक मूल्यों के अनुसार संसार का आदर्श राष्ट्र बनाना है जो तभी बन सकता है जब हम देश के प्रत्येक उस व्यक्ति को स्मरण कर अपने श्रद्धा सुमन अपित करें जिन्होंने इस देश की धर्म व संस्कृति की रक्षा के साथ इसकी भौगोलिक सीमाओं की रक्षा के लिए भी अच्छे कार्य करने के साथ कष्ट सहकर बलिदान दिये हैं।

देश की धर्म व संस्कृति सहित इसकी अखण्डता की रक्षा व देशवासियों में परस्पर एकता स्थापित करने में आर्यसमाज की स्थापना व इसके कार्यों का भी महान योगदान है। इनका भी आज के दिन स्मरण किया जाना चाहिये। यदि महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना कर वैदिक धर्म व संस्कृति का प्रचार व प्रसार न किया होता तो हमें सन्देह है कि यह देश आज जिस रूप में है इसका वह रूप न होता। हम महर्षि दयानन्द के महान कार्यों के कारण ही उनके अनुयायी बने हैं अन्यथा अन्यों की तरह हम भी किसी अन्य गुरु व नेता के अनुयायी बन सकते थे। हमें इस बात का भी गौरव है कि हमने अपने गुरु व आदर्श का चयन करने में सही निर्णय लिया है। आज आर्यसमाज के कारण देश में अन्धविश्वासों को दूर करने के साथ समाज सुधार सहित शिक्षा के क्षेत्र में जो उन्नति हुई है, उसके पीछे हमें मुख्यतः महर्षि दयानन्द, आर्यसमाज व इसके महान नेता स्वामी श्रद्धानन्द, गुरुदत्त विद्यार्थी, पं. लेखराम, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, महाशय राजपाल, पं. चमूपति, श्यामजी कृष्ण वर्मा आदि अनेक महान् युगपुरुष दृष्टिगोचर होते हैं।

सृष्टि की उत्पत्ति के कुछ समय बाद से लोग तिब्बत से आव्रजन कर संसार के विभिन्न भागों में जाकर बसते रहे। समयान्तर पर वेदोंएवं वैदिक शास्त्रों के आधार पर अनेक मनुष्य समूहों ने अपने अपने देश भी संसार में स्थापित कर लिये। समय के साथ कुछ देशों में वैदिक शिक्षाओं के प्रचार प्रसार से शान्ति रही तो कहीं राक्षसीय व शैतान के गुणों वाले मनुष्यों ने अपने इर्द-गिर्द सहित पडोसी देशों में अशान्ति उत्पन्न करना आरम्भ किया जिससे युद्ध की सी स्थिति आयी और उनमें युद्ध भी हुए। हो सकता है कि सुदूर अतीत में किसी राष्ट्र ने दूसरे को जीत कर अपने राज्य में सम्मिलित भी किया होगा। अतः देश के अन्दर सामाजिक अपराधों के लिए रक्षक-पुलिस व बाह्य शत्रुओं से रक्षा के लिए सेना की आवश्यकता आरम्भ से ही रही है। दशहरे के पर्व में देश की अखण्डता व एकता की रक्षा के लिए पुलिस व सुरक्षा बलों सहित सेना की आवश्यकता सिद्ध होती है। आज हमारा देश दो ओर से साम्राज्यवादी प्रवृत्ति की मानसिकता वाले दानव प्रवृत्ति के शत्रु देशों से घिरा हुआ है। अन्य कब शत्रुता आरम्भ कर देंगे, कहा नहीं जा सकता। अतः राष्ट्र को पराजय और विघटन से बचाना भी हमारे पुरोहितों, विद्वानों, राज्याधिकारियों व सेना का कर्म और धर्म है। पुरोहित पण्डित जी का नाम नहीं है। पुरोहित राष्ट्र के सर्वाधिक हितकारी पुरुषों को कहते हैं। इसमें प्रधानमंत्री सहित सेनाध्यक्ष, सेना व देशभक्त नागरिक सम्मिलित हैं। यह देश के लिए सन्तोष की बात है कि केन्द्र में इस समय एक सशक्त, देशभक्त, धर्म व संस्कृति का प्रेमी, दुष्टों व राष्ट्र के शत्रुओं के लिए भय के प्रतीक श्री नरेन्द्र मोदी जी प्रधान मंत्री के पद पर हैं। सारा देश और युवापीढ़ी उनके नेतृत्व में विश्वास रखते हुए सभी आन्तरिक व बाह्य समस्याओं में सफलता की कामना करते हुए उनसे आशा व अपेक्षायें रखती हैं। मोदी जी ने 2-3 वर्ष की अल्पावधि में ही अनेक ऐतिहासिक महत्व के अनेक देशहितकारी अपूर्व कार्य किये हैं व कर रहे हैं। यह कार्य जारी रहने चाहिये। रावण के नाश व उसका पर्व मनायें जाने के पीछे भी यही भावना है कि हमें देशवासियों में से आसुरी विचारों को दूर कर आसुरी प्रवृत्ति के शत्रुओं का समूल विनाश करने का चिन्तन व उपाय करना है। यही हमें दशहरे का सन्देश व महत्व विदित होता है।

किसी को पता नहीं कि कब व क्यों इस पर्व में रावण के पुतले के दहन का प्रचलन हुआ। आज बहुत से अपरिपक्व बुद्धि के लोग केवल रावण का पुतला जला देने को ही दशहरा मनाना मानते हैं। यह विचार अपरिपक्वता के सूचक ही हैं। आज हमें इस पर्व को उचित स्वरूप देना चाहिये। पुतला जलाने के स्थान पर 10 दिनों तक रामायण, महाभारत, देश के वीरों की गाथाओं की कथायें देश भर में व टीवी पर हों और साथ ही पूर्व में भारत के पाकिस्तान व चीन से हुए युद्धों का विद्वान अपने व्याख्यानों व प्रवचनों में उल्लेख कर देशवासियों को संस्कारित करें। इस दिन देश की कमजोरियों को दूर कर उसे सशक्त बनाने के उपायों पर विचार भी होना चाहिये। दशहरे के दिन देश के प्रधान मंत्री देश को सम्बोधित करें और देश के आन्तरिक व बाह्य शत्रुओं की कुत्सित योजनाओं व देश की शत्रुओं पर विजय की तैयारियों से जनता को अवगत करायें। नागरिकों को किन कर्तव्यों को पूरा कर देश की रक्षा में सहयोग करना है इसे भी उनके द्वारा अवगत कराया जाना चाहिये। सौभाग्य से प्रधानमंत्री जी ऐसा ही कुछ लखनऊ में करने जा रहे हैं जिससे अनेक विपक्षियों में खलबली मच गई है। जो लोग देश विरोधी कार्य सहित अनावश्यक व अनुचित बयानबाजी करते हैं, वह किसी भी राजनीतिक दल के हों, उन पर प्रतिबन्ध होने के साथ कड़े दण्ड का प्राविधान होना चाहिये और उसका निपटारा शीघ्रतम होना चाहिये जिससे हमारा राष्ट्र विश्व का सबलतम व अविजेय राष्ट्र बन सके। परिवारों में इस दिन वृहत यज्ञों का आयोजन कर राम, कृष्ण, हनुमान, अर्जुन, दयानन्द व सेना की गौरवगाथा का कथन, व्याख्यान व श्रवण किया जाना भी उचित होगा। इन्हीं शब्दों के साथ लेख को विराम देते हुए हम देशवासियों को दशहरे की शुभकामनायें देते हैं। हमने लीक से हटकर लिखा है, कुछ को प्रिय व किन्हीं को नहीं हो सकता है। ओ३म् शम्।

मनमोहन कुमार आर्य