कविता : प्रिय तुम होते जो पास
प्रिय तुम होते जो पास मन मगन मोर बन जाता
दिशा चतुर्दिक पियू पियु का शोर गगन तक जाता
सुन रथ पर चढ़ आ जाते बादल छा जाते हर छोर
तृषा धरा की मिट जाती खिल उठते तन मन पोर
कर श्रृंगार ठुमक संग चलती डाल हाथ में हाथ
दिन कब ढलते खबर न होती ढल जाती कब रात
सखी पिया संग चिहंके बिहसे भूल जेठ का ताप
देख पीर द्विगुणित मन दहके दुसह्य बिरह की घात
प्रिय तुम जो होते पाश खूब उमसते दो बिरही मन
घोर तिमिर नभ छा जाता, तकते नयनो के दर्पण
अधरों तड़क दामिन जाती चित्त गात झकझोर
आकुल व्याकुल प्रीत बरसती छोड़ बन्ध हर छोर
— प्रियंवदा