कविता

कविता : प्रिय तुम होते जो पास

प्रिय तुम होते जो पास मन मगन मोर बन जाता
दिशा चतुर्दिक पियू पियु का शोर गगन तक जाता

सुन रथ पर चढ़ आ जाते बादल छा जाते हर छोर
तृषा धरा की मिट जाती खिल उठते तन मन पोर

कर श्रृंगार ठुमक संग चलती डाल हाथ में हाथ
दिन कब ढलते खबर न होती ढल जाती कब रात

सखी पिया संग चिहंके बिहसे भूल जेठ का ताप
देख पीर द्विगुणित मन दहके दुसह्य बिरह की घात

प्रिय तुम जो होते पाश खूब उमसते दो बिरही मन
घोर तिमिर नभ छा जाता, तकते नयनो के दर्पण

अधरों तड़क दामिन जाती चित्त गात झकझोर
आकुल व्याकुल प्रीत बरसती छोड़ बन्ध हर छोर

प्रियंवदा

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।