गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बढ़कर हमें है जान से प्यारी स्वतंत्रता
है साजिशों की हो न हो मारी स्वतंत्रता
बूढों के हाथ बेटियाँ बिकती रही यहाँ
ये सोचकर उदास है क्वारी स्वतंत्रता
बदले में जो ख़ुशी के हमें क़र्ज़ दे रहे
गिरवी हैं उनके पास हमारी स्वतंत्रता
तुमसे न छीनकर कोई ले जाये कल मुझे
कह-कह के हमसे आपसे हारी स्वतंत्रता
नापाक दुश्मनों की पहुँच से बहुत परे
हमने हृदय में ‘शान्त’ उतारी स्वतंत्रता

— देवकी नंदन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ