मैं
मैं को मुझमें पाती हूँ
फिर खुद से दूर हो जाती हूँ।
मुझमें मैं बन जाती हूँ
अक्कड़ सीने को चलती हूँ।
तन्हा मन का होता है मैं
सबसे जुदा हो जाती हूँ।
दर्द बेदर्द बन जाता है
खुद से ख़फा हो जाती हूँ
इस मैं में नहीं जीना मुझको
मृत्यु को माँग लेती हूँ।
— कल्पना भट्ट