कुण्डली/छंद “कुंडलिया” *महातम मिश्र 17/10/201617/10/2016 लहरें उठें समुंदरी, सूरज करें प्रकाश नौका लिए सफर चली, मोती मोहित आस मोती मोहित आस, किनारे शोर मचाएँ बादल दिखता पास, चाँद तन मन ललचाए कह गौतम चितलाय, अलौकिक शोभा पसरे देखत जिया जुड़ाय, चलें लहरों पर लहरें॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी