गीतिका/गजल
मापनी- 2122, 2122 2122 212
वो गई बरखा बरस कर नेह की बदरी लिए
नभ हुआ निष्तेज मानों शाम है ठिठुरी लिए
क्वार कार्तिक का महिना खेत खर खलिहान में
हर कदम किसान हुलसित बीज की गठरी लिए॥
उठ रहा सूरज भी जल्दी धूप रूप शृंगार कर
लहलहाते धान धरती सोने की कतरी लिए॥
गुनगुनाये गीत रजनी आ गई नवरात्री
कुछ दिनों में आएगी दीपावली दियरी लिए॥
रस भरे गन्ने खड़े हैं पोर पोर रख गांठ में
भर रहें कचरस कड़ाही गुड़ भरी गगरी लिए॥
मन गया मेला दशहरा दैत्य दुष्ट दंडित हुआ
बीर सेना चल पड़ी है राम रब नगरी लिए॥
धीरता रख बीरता गौतम बहुत सहता रहा
एक ही हुंकार में तुम गिर गए ठठरी लिए॥
हम बड़े है यह दिसंबर ले बड़ा दिन आएगा
नव वर्ष नव गर्जना चित, एकता लहरी लिए॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी