लेख

जरूरत है वाराणसी जैसे हादसों से सबक लेने की

हादसे कई तरह से घटित होते है, कुछ हादसे प्रकृतिक प्रकोप से होते है जिसे टालना नामुमकिन तो नहीं कह सकता लेकिन बेहद मुश्किल होता है , जैसा उत्तराखंड के चार धाम यात्रा के दौरान बादल फटने से हुआ , कुछ निजी लापरवाही के कारण भी घटित होते है किन्तु वैसे हादसे जो सरकार और प्रशासनिक लापरवाही और बदइंतजामी के कारण घटित होते है निसंदेह उसपर नियंत्रण संभव है , लेकिन कही न कही हमारी छोटी सी चूक एक बड़े घटना को अंजाम देती है
ऐसी ही एक चूक वाराणसी के जय गुरूदेव के समागम के दौरान घटित हुई , प्राप्त समाचारों के अनुसार वाराणसी के राजघाट, पुल पर किसी एक इंसान के अचानक नदी में गिरने से भगदड़ मच गई और हादसा हो गया , दूसरी बात जो सामने आ रही है कि अत्यधिक भीड़ के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई और फिर अचानक भगदड़ भच गई , अब कारण कुछ भी हो लेकिन एक कटू सच यह है कि हादसा हुआ है और तकरीबन 25 लोगों ने अपनी जान गवाई है ।
हर बार की तरह पक्ष प्रतिपक्ष की बयानबाजी जारी है , स्थानीय सरकार और प्रशासन को इस हादसे का जिम्मेदार बताया जा रहा है , सरकार ने आनन फानन में हादसे में पीड़ितों के लिए सरकारी मुआवजे का एलान कर अपनी जिम्मेदारी निभा दी है , कुछ प्रशासन अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है , रात से ही दुख से डूबे हर दल के प्रवक्ता विभिन्न चैनलों पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते नजर आ रहे है और सबसे धैर्य धरने की अपील भी कर रहे है, शायद कुछ जांच कमेटियाँ भी अब तक बन चुकी होगी और फिर सरकार और प्रशासन , पक्ष प्रतिपक्ष और व्यथित टी वी चैनल भी दो चार दिन के तू तू मैं मैं के बाद भूल जाएंगे कि कभी कोई हादसा हुआ था , फिर गमजदा पीड़ित परिवार अपने भाग्य को कोसते समान्य होने की कोशिश करते रहेंगे, लेकिन सवाल उठता है क्या सरकार द्वारा ऐसे हादसों के पीड़ितों को एक बार मुआवजा दे कर अपना पीछा छूड़ा लेना काफी है ? और ऐसे हादसों से हुए मौत का जिम्मेदार कौन है ? और आखिर क्यूँ नहीं हम ऐसे हादसों से सबक लेते हे ?
एक पीड़ित परिवार जो किसी अपने को खोता है तो वह सिर्फ परिवार का एक इंसान ही नहीं खोता ,मरने वालों में कई ऐसे लोग होते है जिनके अकेले कंधे पर घर परिवार की आर्थिक हालत निर्भर करती है और कई परिवारों का चुल्हा भी ऐसे किसी एक इंसान के आमद पर ही निर्भर करता है , मरने वालों में किसी का पति तो किसी का भाई और पिता होता भी होता है , कहने का तात्पर्य यह कि ऐसा एक हादसा सिर्फ पीड़ित परिवार की एक जिंदगी नहीं लेता , ऐसे परिवार का निवाला भी छीन जाता है , तो ऐसी एक मौत न जाने कितनी जिंदगियाँ बर्बाद कर देती है और मौत के मुंह में ढकेल देती है , ऐसे में सरकार ऐसे परिवार को कुछ लाख का मुआवजा देकर कैसे भूल सकती है , ऐसे हादसे के बाद क्या कुछ प्रशासनिक अधिकारियों को सस्पेंड कर देना और जांच कमेटियाँ बैठा देने से क्या सरकार और संबंधित प्रशासन की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है ? , अगर आंकड़े पर गौर करे तो तकरीबन हर वर्ष ऐसी कोई न कोई घटना घटित होती ही है , अगर हम बाकी हादसे छोड़ भी दे तो भी सिर्फ भगदड़ जैसा हादसा भी पिछले कई सालो से लगातार घटित हो रहा है , 2010 , मार्च महीने में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ में राम जानकी मंदिर में भगदड़ से तकरीबन 60 से अधिक लोग मौत की नींद सो गए थे , 2011 में 14 जनवरी केरल के सबरी माला मंदिर में भगदड़ से 100 से अधिक लोगो की मृत्यु हो गई थी और इसी वर्ष हरिद्वार के एक धार्मिक कार्यक्रम में भगदड़ से 16 लोगों की मृत्यु हो गई थी , ऐसो ही घटना बिहार के छठ पूजा में भगदड़ की हुई थी जिसमे तकरीबन 17 लोग काल के गाल में समा गए थे , 2013 में इलाहाबाद के कुंभ मेले में मची भगदड़ में तकरीबन 36 लोगो ने अपनी जान गवाई थी , इसी वर्ष मध्य प्रदेश के रत्नगढ मंदिर में मचे भगदड़ से 100 से अधिक लोग मारे गए थे , 2014 को बिहार के पटना में छठ पूजा के दौरान पुनः भगदड़ की घटना ने 36 लोग निगल लिए थे, ऐसी ही एक भयानक घटना 2015 में आंध्र प्रदेश के पुष्कर मेले में भगदड़ से हुई थी और 27 श्रद्धालु की मौत हो गई थी आंकड़े देने का तात्पर्य यह है कि एक ही तरह के हादसे की पुनरावृति यह बतलाता है कि हम ऐसे हादसों से कोई सबक नहीं लेते न ही कोई जिम्मेदारी समझते है तो क्यों नहीं ऐसे हादसों के मृतक किसी दुर्घटना का शिकार नहीं हुए अपितु लापरवाही और बदइंतजामी ने उनका कत्ल कर दिया है ऐसा समझा जाए और अगर कत्ल हुआ है तो निश्चित रूप से कातिल भी होगा जिसपर कारवाई किसी कातिल की तरह ही होनी चाहिए चाहे वो सरकार के नुमाइंदे हो , कोई प्रशासनिक अधिकारी या आयोजक हो ।
जो हादसा वाराणसी में घटित हुआ प्रशासन के तरफ से दलील ये दी जा रही हे कि जय गुरूदेव संस्था में समागम में शामिल होने के लिए सिर्फ 3000 लोगो की अनुमति ली गई थी लेकिन तकरीबन 4 लाख लोगों का आना ही हादसे का मूल कारण रहा , जय गुरूदेव संस्था की पहुंच और उनके अनुयायी सदस्यों की कितनी बड़ी संख्या हे किसी से छूपा नहीं है , ऐसे में समागम हेतु मात्र 3000 लोगो की संख्या, वो भी वाराणसी जैसे धार्मिक स्थल पर , सरकार और प्रशासन द्वारा दी जाने वाली ऐसी दलील बचकाना लगती है ,तो कही न कही यह लापरवाही और बदइंतजामी की ही चूक है जिसको ढाकने की कोशिश की जा रही है ।
देश में किसी भी धार्मिक या राजनीतिक कार्यक्रम हेतु स्थानीय प्रशासन को आयोजक द्वारा निश्चित संख्या से अवगत करवाना होता है तब जाकर इजाजत मिलती है तथा प्रशासन ऐसे कार्यक्रम का सफलता पूर्वक आयोजन हेतु प्रसाशनिक इंतजामात करता है लेकिन या तो आयोजक द्वारा शामिल होने वाले लोगो की संख्या कम कर के बताया जाता है या इसमे कही न कही प्रशासनिक भ्रष्टाचार की बू आती है ।
ऐसे में निश्चित रूप से ऐसे किसी भी हादसे की जिम्मेदारी स्थानीय सरकार, प्रशासन या आयोजक की ही है और उन्हे इसके लिए दंडित किया जाना चाहिए और ऐसे दुर्घटना से सबक लेना चाहिए ताकि इसकी पुनरावृति न हो किन्तु ऐसे हादसे से हम जैसे आम लोग भी कही न कही खुद के गलतियों से भी सबक नहीं लेते और अक्सर ऐसे हादसे का शिकार हो जाते है जैसे वैसे किसी स्थल पर जाने से परहेज करे जहाँ बहुत अधिक संख्या में लोगो के जुटने की संभावना हो ,किसी भी ऐसी जगह पर जहाँ रास्ता सकड़ा हो पंक्तिबद्ध हो जाने से हादसे को टाला जा सकता है , जब आप कहीं भीड़ भार वाले स्थान पर हो तो अफवाह फैलाने और अफवाह का शिकार होने से बचने की कोशिश करे , अगर भगदड़ मची हो तो भीड़ के साथ तेज दौड़ने की कोशिश के बदले भीड़ से अलग होने की कोशिश करे ताकि भीड़ थोड़ी नियंत्रित की जा सके और स्वय भागने से पहले महिलाओं और बच्चो को निकालने की कोशिश करे , मुश्किल हालत पर मस्तिष्क पर नियंत्रण करना और क्षण भर में निर्णय लेना मुश्किल होता है फिर भी थोड़ी सी समझदारी आपकी और दूसरे की लोगो की जान बचा सकता है ।
देश में अब तक भीड़ को नियंत्रित करने हेतु हम और हमारी सरकार देशी तरीके पर ही निर्भर है किन्तु जब ऐसे हादसे लगातार घटित हो रहे है जरूरत है कि ऐसे कार्यक्रमों में भीड़ को नियंत्रित करने हेतु विशेष प्रशिक्षण की तथा विशेष रूप से इसी कार्य हेतु प्रशिक्षित किए गए प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी के तैनाती की , जिससे ऐसे हादसे से सबक लेते हुए हम इसकी पुनरावृति से बच सके ।

अमित कु अम्बष्ट “आमिली “

अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली'

नाम :- अमित कुमार अम्बष्ट “आमिली” योग्यता – बी.एस. सी. (ऑनर्स) , एम . बी. ए. (सेल्स एंड मार्केटिंग) जन्म स्थान – हाजीपुर ( वैशाली ) , बिहार सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन विभिन्न समाचार पत्र और पत्रिकाओं में निरंतर आलेख और कविताएँ प्रकाशित पत्रिका :- समाज कल्याण ( महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की मासिक पत्रिका), अट्टहास, वणिक टाईम्स, प्रणाम पर्यटन, सरस्वती सुमन, सिटीजन एक्सप्रेस, ककसाड पत्रिका , साहित्य कलश , मरूतृण साहित्यिक पत्रिका , मुक्तांकुर साहित्यिक पत्रिका, राष्ट्र किंकर पत्रिका, लोकतंत्र की बुनियाद , समर सलील , संज्ञान साहित्यिक पत्रिका,जय विजय मासिक बेव पत्रिका इत्यादि समाचार पत्र: - प्रभात खबर, आज , दैनिक जागरण, दैनिक सवेरा ( जलंधर), अजित समाचार ( जलंधर ) यशोभूमि ( मुम्बई) ,उत्तम हिंदु ( दिल्ली) , सलाम दुनिया ( कोलकाता ) , सन्मार्ग ( कोलकाता ) , समज्ञा ( कोलकाता ) , जनपथ समाचार ( सिल्लीगुडी), उत्तरांचलदीप ( देहरादून) वर्तमान अंकुर ( नोएडा) , ट्रू टाइम्स दैनिक ( दिल्ली ) ,राष्ट्र किंकर साप्ताहिक ( दिल्ली ) , हमारा पूर्वांचल साप्ताहिक ( दिल्ली) , शिखर विजय साप्ताहिक , ( सीकर , राजस्थान ), अदभुत इंडिया ( दिल्ली ), हमारा मेट्रो ( दिल्ली ), सौरभ दर्शन पाक्षिक ( भीलवाड़ा, राजस्थान) , लोक जंग दैनिक ( भोपाल ) , नव प्रदेश ( भोपाल ) , पब्लिक ईमोशन ( ) अनुगामिनी ( हाजीपुर, बिहार ), लिक्ष्वी की धरती ( हाजीपुर, बिहार ), नियुक्ति साप्ताहिक ( रांची / वैशाली , बिहार) इत्यादि प्रकाशित कृति :- 1 . खुशियों का ठोंगा ( काव्य संग्रह ) उदंतमरुतृण प्रकाशन , कोलकाता साझा काव्य संग्रह ............................... 1. शब्द गंगा (साझा ), के.बी.एस प्रकाशन , दिल्ली 2. 100 कदम (साझा ) , हिन्द युग्म , दिल्ली 3. काव्यांकुर 4 ( साझा ) शब्दांकुर प्रकाशन, दिल्ली 4. भाव क्षितिज ( साझा ) वातायन प्रकाशन, पटना 5.सहोदरी सोपान 3 ( साझा) , भाषा सहोदरी संस्था , दिल्ली 6 रजनीगंधा ( पता :- PACIFIC PARADISE FLAT NO - 3 A 219 BANIPARA BORAL KOLKATA 700154 MOB - 9831199413