पत्थर के सनम
एक पत्थर को मैंने रास्ते से उठाया
मेरे सपने के राजकुमार सा उसे सजाया
करती रही जिसकी ज़िंदगी भर पूजा
वो था सिर्फ़ तू ना कोई दुजा
पर मुझे कभी ना चाहा यारा तूने
मेरी भावना को तार तार किया तूने
मैं प्यार के तराने गाती रही तेरे संग
पर तू साथ होके भी ना रंगा मेरे रंग
मैं बनाती रही ख़ुशियों के घरौंदे
पर तेरी बेरुख़ी ने मेरे हर पल रौंदे
तू आसानी से चला गया मेरे जीवन से
जैसे भँवरा मँडराता हर एक फूल पे
ये बेदर्दी तूने मेरी प्रीत को रुसवा किया
ली ना कभी मेरी सुध बस मुँह मोड़ लिया
फिर भी तुझे बेइंतिहा प्यार करती हूँ मैं
तू रहे ना रहे साथ तुझे ही पूजती हूँ मैं
तू बेवफ़ा ही सही पर तुझे ना भूल पाऊँगी
पत्थर से देवता बनाकर तेरी सूरत मैं अब निहारूँगी
— सुवर्णा परतानी