मेरी कविता में मेरा जन्म
मेरी कविता में
मेरा जन्म राम की भांति ही होता है
सब देखने आते है
लेकिन
जोगी के रूप में कोई नहीं आता।
बालरूप में
खेले गये खेल वे ही थे
लेकिन हमें चतुराई
सिखाई
कोई काग हमसे रोटी नहीं छीन सकता।
गुरु गृह पढ़ने तो गया
कोचिंग सहित अनेकों गुरु ने शिक्षा दी
लेकिन
अल्प काल में नहीं
विद्या आई ही नहीं।
मैं सबकी सेवा के लिए
तैयार था
लेकिन हमें हमारे पिता जी से
अनुज समेत कोई मांगने नहीं आया ।
शादी की बात आई
धनुष नहीं तोड़ा
दहेज की शर्तें रख दी
जो पूरी करें वहीं शादी होगी
चार जगहों से तोड़ी
फिर एक जगह की।
वन गमन तो हुआ
मैं नहीं गया
माता पिता को भेज दिया।
भरतमिलाप
को कोई स्थान नहीं
मैं अकेला था।
पत्नी का हरण नहीं हुआ था
उसके अशिकों के इशारों से
खुद चली गई।
ले जाने वाले राक्षस नहीं थे
मायके के छैला ही थे।
शूपर्णखा की नाक नहीं कटी
उसी को अपना लिया ।
युद्ध का सवाल ही नहीं उठता
हाँ भाई मेरा जन्म राम के भांति हुआ
अवतार नहीं ।
— अनिल कुमार सोनी