“ये शब्द मेरे कान नहीं”
मुझे नहीं आता
लिखना
पढ़ना
बोलना, तो क्या?
ये शब्द मेरे कान नहीं॥
मुझे नहीं आता
देखना
दिखाना
गिनना, तो क्या?
ये दृश्य मेरे नैन नहीं॥
मुझे नहीं आता
उठाना
गिराना
जताना, तो क्या?
ये आनन मेरे अरमान नहीं॥
मुझे नहीं आता
तुमसा
हँसना
हंसाना, तो क्या?
ये तस्वीर तक मुस्कान नहीं॥
मुझे नहीं आता
चेहरा
चबाना
भुनाना, तो क्या?
ये क्षुधा, भूख इंसान नहीं॥
मुझे नहीं आता
कुछ भी, है ना?
परमात्मा
अंतरात्मा, तो क्या?
ये जीव जन्म प्रमान नहीं॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी