रोक नहीं पाओगे, मेरे प्रवाह को…
मेरे अन्दर भी है
आंसुओं का समंदर
जो साथ चलता है ।
साफ कहूं
हमसफ़र है ।
लेकिन
ठप्पा
जो मेरे माथे पर लगा है
मर्द होने का ।
रो नहीं पाता
घूँटता हूँ अन्दर ही अन्दर ।
दिल में
दफना देता हूँ
हर दर्द को
हर बात को
हर जख्म को !
जैसे
कुरेदते हो रेत को
फल्गु का
वैसे
मुझे भी कुरेदना
फफक पडूंगा !
रोक नहीं पाओगे
मेरे प्रवाह को
फल्गु सा !