थम नहीं रहा अस्पताल में आगजनी का सिलसिला
देश के ग्रामीण इलाके से लेकर शहरी इलाके तक विगत कुछ वर्षो में सरकारी अस्पताल के साथ साथ निजी अस्पताल और नर्सिंग होम की संख्या में काफी इजाफा हुआ है , निजी अस्पताल के खुलने से जहाँ कुछ हद तक सरकारी अस्पतालों पर निर्भरता कम हुई है वहीं दूसरी तरफ ऐसे अस्पताल सेवा संस्थान से इतर एक बड़े व्यापार के रूप में उभरे है , इस व्यवसायीकरण का आलम यह रहा कि ऐसे अस्पताल धीरे धीरे निम्न आय वाले आम लोगों से बहुत दूर हो गए और सुविधा के नाम पर मरीजों का शोषण हो रहा है और आलम यह है कि अस्पताल स्टार होटल में तब्दील होते जा रहे है , एक कमरे में वो सारी सुविधाए उपलब्ध है जिसकी मरीज को कोई आवश्यकता नहीं है या कम आवश्यकता है लेकिन अस्पताल के सुरक्षा हेतु जो बुनियादी सुविधाए चाहिए या जिन बुनियादी सुविधाओ की निरंतर जांच पड़ताल की आवश्यकता है उसपर ध्यान नहीं दिया जा रहा और इस भारी चुक का खामियाजा यदा कदा मरीज भोग रहे है , ऐसे ही चूक का नतीजा है, लगातार हो रही अस्पतालों में आगजनी की घटनाएँ ।
2011 में कोलकता के एम एम आर आई की भीषण आगजनी की घटना ने सम्पूर्ण देश को हिला कर रख दिया था , एम एम आर आई देश के उन निजी अस्पतालों में से है जो सारी आधुनिक सुविधाओं से लैश मानी जाती है तथा देश भर में इसकी शाखाएँ है , मरीज अपने इलाज पर सुविधा के नाम पर अत्यधिक पैसा खर्च करते है और इसे बहुत सुरक्षित भी माना जाता था लेकिन जब यहाँ हर बार की तरह साॅट सर्किट से आग लगने की घटना घटित हुई तो तकरीबन 89 लोगों की जान चली गई, जिससे 85 सिर्फ मरीज थे जो यहा अपनी बिमारी से निजात पाने आए थे और अपनी जान गवा बैठे , जब आगजनी हुई तो जाँच से पता चला की अस्पताल के बेसमेंट में काफी मात्रा में केमिकल्स और दवाईया रखी थी जिससे आग और अधिक भड़क गया और काबु पाने में काफी मुश्किल हुई , कुछ मरीज की मौत उन केमिकल्स से निकलने वाले धुए से हुई , आनन फानन में सरकार ने लाइसेंस रद्द करने की बात कही , कुछ महीनों के लिए अस्पताल बन्द भी हुआ , जाँच कमेटियाँ भी नियुक्त हुई लेकिन अब जब भी उस अस्पताल पुनः उसी जोश से चलता देखता हूँ तो कही न कही भ्रष्टाचार की बू आती है चाहे यह भ्रष्टाचार जिस स्तर पर हो ।
अगर निजी अस्पताल और नर्सिंग होम हेतु रजिस्ट्रेशन या औपबंधिक लाईसेंस लेने हेतु नियमावली का अवलोकन करे तो इसके लिए सरकार द्वारा आवश्यक मुख्य चार शर्तो रखी है , अनुभवी चिकित्सक, फायर फाइटर का प्रमाण पत्र, जैव कचरों के निष्पादन का प्रमाणपत्र, निबंधन शुल्क हेतु बैक ड्राफ्ट, इन शर्तो को पूरा करने के बाद ही किसी निजी अस्पताल या नर्सिंग होम को मान्यता दी जाती है लेकिन दुखद है कि हर अस्पताल के पास ये सारे प्रमाण पत्र तो होते है लेकिन इसको नियम अनुसार प्राप्त करने हेतु जो बुनियादी सुविधाए है वो या तो नहीं है और यदि है तो उसकी नियमित जांच और देख रेख नहीं होने से आवश्यकता पड़ने पर वे कारगर नहीं साबित होते है ।
इसी वर्ष अगस्त महीने में बंगाल के मुर्शिदाबाद मेडिकल कालेज के अस्पताल में आगजनी की घटना घटित हुई, समाचार के अनुसार आग सबसे पहले मेडिसीन विभाग में लगी फिर बढते बढते नवजात शिशु विभाग तक पहुंच गई जिससे एक नवजात शिशु, एक आया तथा एक एडमिट महिला मरीज के रिश्तेदार की मृत्यु हो गई तथा 18 लोग घायल हो गए ।
ऐसी ही एक दुर्घटना इसी महीने कानपुर के हैलट अस्पताल के एन आई सी यूँ में हुई , जहाँ नवजात शिशु का विभाग था वहीं आक्सीजन के सिलिंडर रखे थे लेकिन गनीमत यह रही कि अस्पताल के कर्मचारी ने आनन फानन में उन सिलिंडरों को बाहर फेक दिया जिससे आग पर काबू पा लिया गया , किसी की जान तो नहीं गई लेकिन लापरवाही और चूक से इंकार नहीं किया जा सकता है ।
ऐसी ही आगजनी एक घटना पिछले दिनों लखनऊ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल में भी घटित हुई जब वाजिब के तहत किसी ने पार्किंग में पेट्रोल के जरिए अस्पताल में आग लगा दी , बहुत मुश्किल से लोगों को बचाया गया ।
ऐसी ही एक ताजा घटना दिनांक 17/10/16 को उडीसा, भुवनेश्वर के सिम अस्हुपताल में घटित हुई है , हर बार की तरह इस बार भी आग लगने का कारण साॅट सर्किट को बतलाया जा रहा है तकरीबन 22 लोगों की मृत्यु हो गई है और तकरीबन 20 लोग घायल है , दुखद है कि आग आई सी यूँ में लगी ; आई सी यूँ में दाखिल मरीज की हालत ऐसी नहीं होती की वे खुद उठ कर भाग सके , ऐसे में उनको बचाना भी बेहद मुश्किल था , लेकिन जो चिंता करने का विषय है कि तकरीबन 500 लोग शीशे के अंदर फंसे थे ऐसे में मृतकों की संख्या में इजाफा हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है लेकिन अगर उपरोक्त सभी घटनाओं का अवलोकन करे तो महसूस होता है कि हर बार अस्पताल आगजनी का ठिकरा साॅट सर्किट पर फोड़ कर बचने की कोशिश करते है और जितने मरीज आग के जलने से नहीं मरते उससे अधिक धुआ के कारण दम घुटने से मर जाते है ऐसे में सवाल उठता है कि इन अस्पतालों के पास अगर फायर फाइटर और बाकी प्रमाण पत्र है भी तो क्या अग्नि शामन यंत्र की निरंतर जांच की जाती है या नहीं ? क्या अस्पताल ने अग्नि की स्थति में मौक ड्रील कर कभी कर्मचारियों को ऐसे मुश्किल हालात में मरीजों को कैसे बचाया जाए , इसका प्रशिक्षण दिया है ? क्या बिजली के रख रखाओं की मासिक जांच हुई है ? आम तौर पर बड़े अस्पताल वातानुकूलित होते है जिस कारण शीशे से बंद होते है तो ऐसी हालत में जब आग लग गई हो मरीजों को जल्द से जल्द बाहर निकालने का कोई प्रबंध अस्पताल के पास है भी या नहीं ?
अब जब अस्पतालों में थम ही नहीं रहा आगजनी का सिलसिला जरूरत है अस्पताल के रजिस्ट्रेशन और लाईसेंस पाने की नियमावली को और शख्स करने तथा उसका अनुशासन से पालन करने की , आग लग जाने के हालात में अस्पताल कर्मचारियों को मरीजों को कैसे बचाए , इसके प्रशिक्षण देने की , फायर फाइटर प्रमाण पत्र के अनुसार बुनियादी सुविधा के मासिक या कम से कम त्रैमासिक जांच की , बिजली के रख रखाव की मासिक जांच कर प्रमाणपत्र देने की , अस्पताल के भवन निर्माण में आग की स्थति में मरीजों को यथा शीघ्र बाहर निकाला जा सके ऐसे अत्यधिक निकास द्वार की आवश्यकता है तथा मल्टीस्टोरी अस्पताल वाले भवन में लिफ्ट के अतिरिक्त जल्दी अस्पताल से बाहर होने की कोई तकनीक हो सकती है या नहीं ?
अगर सरकार और अस्पताल प्रशासन उपरोक्त बिंदुओं पर विचार कर अनुसरण करे और कुछ ठोस कदम उठाए तो आगजनी की घटनाओं पर काबू पाने में बहुत हद तक मदद मिलेगी ।
अमित कु अम्बष्ट ” आमिली “