“कुंडलिया”
कैसे कैसे लोग हैं, कैसी कैसी चाल
कैसी कैसी चातुरी, कैसी कैसी ढ़ाल
कैसी कैसी ढ़ाल, पहनते हैं व्यविचारी
चलते सीना तान, छद्म की करें सवारी
कह गौतम चितलाय, बोलते द्रोही जैसे
अपना घर विखराय, सुखी रह पाते कैसे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
कैसे कैसे लोग हैं, कैसी कैसी चाल
कैसी कैसी चातुरी, कैसी कैसी ढ़ाल
कैसी कैसी ढ़ाल, पहनते हैं व्यविचारी
चलते सीना तान, छद्म की करें सवारी
कह गौतम चितलाय, बोलते द्रोही जैसे
अपना घर विखराय, सुखी रह पाते कैसे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी