मुश्किल में है ” ऐ दिल है मुश्किल “
कहते है सिनेमा समाज का आईना होता है और हम सिनेमा में वहीं सब कुछ देखते है या दिखाते हो जो हमारे आसपास समाज में घटित होता है , अतः सानेमा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है लेकिन आज की दौर की बात करे तो सिनेमा कला का एक माध्यम से बढता हुआ एक उधोग या यूँ कहे की बहुत बड़े व्यवसाय में तब्दील हो गया , आज सिनेमा बनकर सीधे सिनेमा हाॅल तक नहीं पहुंचता अपितु आज सिनेमा के रिलीज होने के पहले इसकी मार्केटिंग होती है और यह मार्केटिंग पर निर्भर करता है कि अमुख सिनेमा कितने का व्यवसाय कर पायेगी, सिनेमा रिलीज होने के पहले ही उसके वितरण के अधिकार , म्यूजिक के अधिकार तथा टेलीविजन चैनल को प्रसारण का अधिकार बेच दिए जाते है, ऐसे में एक औसत सिनेमा भी अपने लागत के आसपास या अधिक का व्यवसाय करने में सफल होती है और इसमे से कुछ एक सिनेमा जो हिट होती है वो करोड़ों का व्यवसाय करने में सफल होती है , कहने का तात्पर्य यह है कि आज की तारीख में जब सिनेमा के लागत के हिसाब से पहले ही मल्टिप्लेक्स के स्क्रीन तय हो जाते है कि एक बार सिनेमा कितने स्क्रीन पर लांच की जाएगी ताकि फ्लाप होने के बावजूद वह कम से कम अपनी लागत पहले हफ्ते में ही निकालने में सफल हो जाए , ऐसी स्थति में सिनेमा को सिर्फ कला के मूल्यों पर तौलना गलत होगा , बेशक सिनेमा बनाने का हर एक क्षेत्र चाहे वो अभिनय हो , निर्देशन हो या निर्माण हो, कला तो है ही लेकिन यह एक बड़ा व्यवसाय है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है ।
विगत दिनों जब पहले पठान कोट का आतंकवादी हमला हुआ, फिर उरी के आतंकवादी हमले ने तो जैसे सारे देश को हिला कर रख दिया , हमारे 17 वीर सैनिक शहीद हो गए , फिर भारतीय सैनिक को सर्जिकल स्ट्राइक जैसे हमले को अंजाम देना पड़ा, ऐसे में देश में पाकिस्तान के प्रति एक बेहद घृणा और गुस्से का माहौल है , ऐसा पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान से रिश्तों में खटास के कारण कुछ दल हमेशा से पाकिस्तान के क्रिकेटर और कलाकारों का विरोध करते रहे है , कई बार देश में पहले भी पाकिस्तानी कलाकारों को कार्यक्रम करने से रोका गया है और विरोध में क्रिकेट पिच को भी खोदने जैसी घटना हुई है जिसके देश में पक्ष और विपक्ष का दो खेमा हमेशा से रहा है लेकिन इस बार का माहौल अलग है , यह विरोध सिर्फ किसी दल तक सीमित नहीं है आज देश का हर नागरिक चाहता है कि पाकिस्तान का हर क्षेत्र और तरीके से विरोध हो ।
लेकिन देश के माहौल से इतर देश का बॉलीवुड के कुछ लोगों का बयान प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है कि इनके लिए देश अधिक महत्वपूर्ण है या इनका अपना कमाने का जरिया ,
पाकिस्तान से जो भी कलाकार आते है वो सिर्फ अपने कला के प्रदर्शन और कला के विस्तार के लिए नहीं आते है अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो यहाँ सिनेमा और क्रिकेट के नाम पर प्राप्त होने वाला अत्यधिक पैसा उन्हे भारत के तरफ खीच लाता है , ऐसे में सिर्फ कला और कलाकार के नाम पर किसी पाकिस्तानी का समर्थन आज की तारीख में जो देश का माहौल है , स्वीकार करना बेहद कठिन होगा ।
इस विवाद के बीच उलझी अभी जिस सिनेमा की सबसे अधिक चर्चा है वो है करण जौहर की फिल्म ” ऐ दिल है मुश्किल “यह फिल्म इसी महीने 28 अक्टूबर को रीलिज होनी है लेकिन महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इसके पुरजोर विरोध के संकेत दिए है और कहा है कि इस फिल्म को प्रदर्शित करने वाले मल्टिप्लेक्स सिनेमा घर की शीशे तोड़ दिए जाएगे , ज्ञातव्य रहे कि इस फिल्म के सह अभिनेता एक पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान है जिसके कारण ही महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का सारा विरोध है ।
अब सवाल उठता है कि यह विरोध कितना जायज है ? और इस विरोध से क्या हासिल होने वाला है ?
जहाँ एक ओर करण जौहर जेसे फिल्म निर्माता जो बहुत सारी बड़ी हिट फिल्मे दे चुके अगर इस बार देश का माहौल उनके पक्ष में नहीं है तो उन्हे थोड़ा धैर्य से काम लेना चाहिए क्योकि जहाँ एक ओर वो 17 सैनिक के परिवार जिन्होने अपना सब कुछ खो दिया है, देश के हर एक नागरिक का कर्तव्य है कि इस मुश्किल घड़ी में हम सब उस परिवार के साथ हो तथा ऐसा कुछ भी करने से बचे जिससे उन परिवारों और देश की भावना आहत हो , आज जब पाकिस्तान में भारतीय को भी कई क्षेत्रों में प्रतिबंधित करने की बात चल रही ऐसे में क्या हम भारतीय में इतनी गरिमा नही बची कि हम ऐसे किसी कलाकार को बिल्कुल प्रतिबंधित कर दे या फिर देश का हर नागरिक इन्हे खारिज कर दे , निर्माता निर्देशक इन्हे काम ना दे और दर्शक इन्हे अस्वीकार कर दे । लेकिन ये तो हुई नैतिक मूल्यों की बात जिसका पाठ कोई पढा नहीं सकता यह देश के लिए किसी के व्यक्तिगत विचारों पर निर्भर करता है या फिर सरकार को ही कोई ठोस कदम उठाना होगा ।
लेकिन आज के तारीख में जब ऐसा कोई निर्णय सरकार ने नहीं लिया है करण जौहर देश के कानून का हवाला देते है और कहते है कि सरकार ने किसी तरह का कोई प्रतिबंध अब तक किसी पाकिस्तान कलाकार पर नहीं लगायी है अतः उनके फिल्म का विरोध सर्वथा अनुचित है और इस फिल्म की शूटिंग जब उन्होने शुरू की तो ऐसा कोई माहौल नहीं था , भावना से परे एक दृष्टि से देखे तो तकनीकि तौर पर करण जौहर का कहना भी बिल्कुल गलत नहीं है ।
अगर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के विरोध को सिर्फ भावनात्मक स्तर पर देखे तो यह विरोध बिल्कुल सही और सटीक प्रतीत होता है लेकिन अपने ही देश के सिनेमा घरों के शीशे तोड़ कर पाकिस्तान को क्या नुकसान होगा और भारत क्या हासिल कर पाएगा ? करण जौहर इस बात पर राजी है कि वो आगे से अपने किसी भी सिनेमा में किसी पाकिस्तानी कलाकार को अनुबंधित नहीं करेंगे , एक बात और गौर फरमाने वाली कि फिल्म बनकर तैयार है , फवाद खान जो इस फिल्म के अभिनेता है अपना मेहनताना ले चुके है ऐसे मे अगर फिल्म रिलीज नहीं भी हो पाई तो उन्हे कोई नुकसान नहीं होगा सारा नुकसान फिल्म से जुड़े हमारे देश के कलाकार निर्माता और निर्देशक तथा देश को वहन करना होगा , ऐसे में इस विरोध से बहुत अधिक हासिल नहीं होने वाला है ,
ऐसे में जरूरत है की कोई बीच का रास्ता निकाला जाए , न देश के लोगों को भावनात्मक ठेस पहुंचे ना ही हम विरोध के अत्यधिक उत्साह में अपने ही देश के लोगों और देश का नुकसान कर दे , करण जौहर की तकरीबन सभी फिल्मों का मुनाफा 50 करोड़ से उपर ही होता है ऐसे क्यों नही करण जौहर अपनी मुनाफे का कुछ हिस्सा शहीद के परिवार को दे जिससे उन परिवारों को भावनात्मक संबल के साथ आर्थिक मदद भी की जा सके और देश की भावना का भी ख्याल रखा जा सके ।
किंतु दोनों ओर आ रही तीखी प्रतिक्रिया के बीच आज फिल्म से जुड़े लोगों ने गृहमंत्री से मिलकर इसका निदान करने तथा सुरक्षा की मांग करने का मन बनाया है वही दूसरी ओर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस फिल्म के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है । ऐसे में कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं की मुश्किल में है ” ऐ दिल है मुश्किल”
अमित कु अम्बष्ट ” आमिली “