बाल कविताबाल साहित्य

~हम बच्चे हैं~

हम बच्चे है,
इतिहास पढ़ने में कच्चे है
पर सदा ही अपनी बात में सच्चे हैं।

इतिहास हैं कि बढ़ता ही जाता है
रोकेंगे हम इसे बढ़ने से
कभी वीर लड़े थे स्वंत्रता को
पर कैसे हम इतिहास से लड़ेंगे?

लड़ेंगे भी यदि हम तो
लड़ने से इतिहास बढेगा
हमारी लड़ाई भी उसमें
लिख दी जाएगी विस्तार से,
रोकेंगे हम फिर कैसे बोझिल विस्तार?

यह बढ़ता ही जा रहा
एक परिवार की तरह
हम न लड़ेंगे और
न ही लड़ने देंगे किसी को
बस इसी तरह रोकेंगे
बढ़ने से इतिहास को।

देंगे अगली पीढ़ी को हम
इतिहास की पुस्तकें पतली
हम बच्चे हैं
इतिहास पढ़ने में कच्चे है
पर सदा ही अपनी बात के सच्चे हैं।
सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|