कहानी

कहानी : भागवत की कजरी

आज कजरी बहुत खुश है मैके जाने का उसका सपना पूरा होने वाला है। है न अजीब बात, किसी लड़की को मैके जाने का सपना देखना पड़े यह कम हैरत की बात नहीं है। झिनकू भैया की लाड़ली कजरी, केवल उनकी ही बेटी नहीं बरन पूरे गाँव की दुलारी बेटी है। गरीबी तब खटक जाती है जब वह किसी के लिए अभिशाप बन जाय और अमीरी तब दिल दुखा जाती है जब कोई गरीब उसमें बिना दोष पिस जाता है। कजरी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था और अमीर ससुराल वाले उसकी सुंदरता, कर्म और संस्कार पर शादी तो कर लिए पर नैहर के नाते से उसे हाथ धोना पड़ा था। पंद्रह वर्ष पहले की बात है रमेश की आँखों में विद्यालय में साथ पढ़ने वाली कजरी ऐसे बस गई कि निकलने की कौन कहें दूर होना भी रमेश को मंजूर नहीं था। हद तो तब हो गई जब रमेश झिनकू भैया के घर आकर अकेले ही कजरी के हाथ की मांग कर बैठा। यह खबर आग की तरह गाँव से लेकर इलाके में फ़ैल गई और कजरी स्कूल से घर के बीच में इतनी बदनाम हो गई कि उसका घर से निकलना बंद हो गया। जिस पर औरतें तो यहाँ तक हौवा उड़ा बैठी कि वह बड़ें बाप का बेटा है, जरूर कजरी पेट से होगी और उसके दबाव में वह हाथ मांगने आ गया है नासमझ है और बिगड़ैल भी। जवानी के हुंमास में अँधा हो गया है, जब अपने घर वापस जायेगा तो प्रेम का भूत उतर जायेगा और कजरी की बदचलनी एक नाजायज बच्चे को जन्म देने के लिए दूसरे का बोझ लिए गांव पर कलंक बनकर घूमेंगी। बहुत कुछ सुनना पड़ा कजरी को, खैर…….
शाम को रमेश अपने घर गया और अपने बाप से सीधा सीधा कह दिया, अगर कजरी नहीं मिली तो वह जान दे देगा। उसकी माँ ने जोर डाला कि एक ही लड़का है कुछ ऊंच नीच कर बैठा तो पछताने के शिवा क्या करेंगे। कुछ भी कमी नहीं है शादी की बात करिये और उसी लड़की को बहु बना लीजिए। बदनामी का विष पिने के बाद झिनकू भैया के पास हाँ करने के अलावां और क्या रास्ता शेष रहा, मजबूरी में यह विष भी पीना पड़ा। उधर रमेश के पिताजी ने कजरी को अपनाने के लिए झिनकू भैया के सामने एक शर्त रख दी कि शादी तो होगी पर लड़की कभी अपने मैके वापस नहीं आएगी न ही, आपस में हमारा किसी भी प्रकार का रिश्ता रहेगा, तीसरा विष भी बोतल में बंद हो गया जो प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा कजरी व कजरी के परिवार को पीना था।
न बारात आई. न शहनाई बजी और हालात की मारी गुमसुम सी कजरी बिना किसी पहल के उस रमेश की हो गयी जो उसके स्कूल में पढ़ता है और बहुत ही बिगड़ैल है।
कजरी जैसी लड़की को पाकर रमेश अपनी बुरी आदतों से दूर रहने लगा और कुछ ही सालों में अपने पिता जी के कारोबार का तनहा जिम्मेदार व कुशल वारिश बन गया। कजरी के गुण सबको मोंहने लगे और वह घर मालकिन बन गई। एक दिन रमेश ने अपने पिता जी कहाँ कि अगर आप कहें तो कजरी अपने पिता जी के भागवत में मैके चली जाय, तो माँ ने अवसर देखकर, हंसते हुए…… हाँ हाँ अब जाने में क्या परहेज है, बाल बच्चे वाली हो गई है जबसे आई है किसी बात के लिए जुबान नहीं खोली, दो दो नाती, एक नातिन है, चले जाना सबको लेकर बच्चों को ननिहाल घुमा लाना, इसमें पूछना क्या है, रिश्ता तो वहीँ से है अब पुरानी बात को कब तक गले लपटाए रहेंगे। बिना इजाजत की शादी को पंद्रह वर्ष बाद इजाजत मिल गई और कजरी के धीरज का उदय हो गया। कजरी की शहनाई आज बज गई और व्याहता हो गई जो अपने व्यवहार और कर्म के नाते कभी गाँव की दुलारी थी आज पीहर से मैके के लिए शानदार डोली (गाड़ी ) में ख़ुशी ख़ुशी बिदा हो रही है……..

पुरे शान शौकत से कजरी की गाड़ी गांव में किलकारती मारती हुई पंहुची तो सबके आँखों से आंसू छलक गए और झिनकू भैया की यज्ञ- भागवत सम्पन्न हो गई, मानों आज कजरी नहीं उसकी बारात आई है, भागवत नहीं झिनकुं भैया कन्यादान कर रहे हैं। पूरा घर , गाँव आज शकून से भागवत के इस परम यज्ञ में अपने उस कलुषित विचारों की आहुति दे रहा है जो असमय में कजरी के ऊपर उतारे गए थे और आज उसी कजरी की आरती उतर रही है……..

महातम मिश्र, गौतम गोरखपूरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ