“चौपई”
महिमा महिमा जपते जाप, सिंघासन पर बैठे साप
बाबा है बहुरुपिया छाप, मन में रखते पैसा पाप।।
कहते सुन लो मेरी बात, तुम नहि करना मुझसे घात
भगवन हूँ मैं मानों तात, देखों जमा किया खैरात।।
छोड़ों कभी न मुझे अकेल, पहनों मुझसे नाक नकेल
लक्ष्मी आएं छेलम छेल, माला मेरी होय न फेल।।
उगते आज अनेकों ढोंग, काटे मच्छर होते रोग
गन्दा पानी गन्दे लोग, रहना बच के भाई भोग।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी