दोहे : पावन पर्व महान
लक्ष्मी गणपति पूजिए, पावन पर्व महान ,
बाढ़े विद्या बुद्धि धन, मानव होय सुजान.
हिया अंधेरौ मिटि रहै, जागै अंतर जोत ,
हिलि-मिलि दीपक बारिए, सब जग होय उदोत |
बहुरि रंग की फुरिझरीं, बरसें धरि बहु भाव ,
भाव तत्व पर एकसौ, याही माखन भाव |
रंग-बिरंगी झलरियाँ, गौखन लुप-झुप होत ,
बिजुरी के जुग में दिखै, कित दीया की जोत |
धूम-धड़ाकौ होत है, गली नगर घर गाम,
रॉकिट-चरखी चलि रहे, जगर-मगर हर ठाम |
जग उजियारा कर सकें, जलें दीप से दीप ,
मन अंधियारा दूर हो, वही दीप है दीप |
जरिवौ सो जरिवौ जरे, जारै जग अंधियार,
जड जंगम जग जगि उठे, होय जगत उजियार |
अंतर्ज्योति जले प्रखर, होय सत्य आभास ,
ऐसा दीप जले जिया, होवै ब्रह्म प्रकाश |
— डा श्याम गुप्त