कुण्डली/छंद

“कुंडलिया”

कणकण है बिखरा जगत, धरती करें पुकार14573008_965477796890007_3299132420640650950_n

माँटी माँटी पूछती, कहाँ चाक कुंभार

कहाँ चाक कुंभार, सृजन कर दीया-बाती

आज अमावस रात, दीप बिन नहीं सुहाती

कह गौतम अकुलाय, रहो जस माँटी कंकण

अलग अलग दरशाय, मगर मिल जाएँ कणकण॥  

— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी          

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ