बड़े क्या हैं- रिश्ते या उम्र या पढाई ?
गाँव का लंगोटिया ‘यार’ आज मुझसे मिलने को घर आया । मुझसे मात्र ‘1’ दिवसीय या one day बड़ा है । बचपन से ही आज से और विपद ग्रामीण माहौल में साथ-साथ पलना, बढ़ना और पढ़ना तथा ग्रामीण रिश्तों के ऊहापोहीय-समीकरण में जोड़ने पर वे मेरे ‘दूर की मौसी’ का बेटा है । ‘दूर की मौसी’ कैसे, ऐसा माँ ने अभीतक मुझे यही बतायी है ??
सो, इससे आगे मुझे मालूम नहीं !!
……और रिश्तों के दुष्चक्रण के कारण इस ‘एक दिनी’ भाई के मुझसे बड़े होने की “गर्वता” को लिए ही ‘रिश्तेदारों’ के जुलूस के सामने उन्हें ‘भैया’ कहना मजबूरी-सा है , फिर तो उन्हें “सादर प्रणाम” भी करना पड़ता है, जब रिश्तेदार नहीं रहते, तो उनका पुकार नाम ही चिल्लाता हूँ मैं ! …अब इसे कोई कुछ कह ले । मेरी बला से…. , क्योंकि कितने ही मेरे साथ पढ़नेवाले ऐसे हैं, जो मेरे से कई साल व टेस्ट मैच जैसे बड़े हैं , लेकिन उन्हें तो मैं नाम कहकर ही बुलाता हूँ, परन्तु नाम के पिछवाड़े में ‘जी’ जोड़ कर बोलता हूँ …दोस्तों के साथ दोस्त भी खिलंदड़ और मैं भी खिलंदड़ !
आते हैं हम उस फलक पर, मुख्यदृश्य दर्शन पर ! हाँ, उनका नाम नहीं बताना चाहूँगा, बस ‘1 दिनी भैया’ से ही काम चलाता हूँ ।
अब वह ‘भैया’ आज जब मेरे घर पर आये, उनके बारे में ‘माँ’ ने बताई थी कि तुम्हारे वो भैया ( 1 दिनी भैया) है न ! उनकी शादी हो गयी है।
मैंने कहा- इतनी कम उम्र में और इतनी जल्दी ही क्या थी ! अभी तो उनका जॉब भी नहीं लगा है , घर कैसे चलाएंगे ?
माँ ने कहा – ट्यूशन पढाता है वो !
मैंने पूछा- ‘लड़की’ (दुल्हिन) क्या करती है ?
माँ ने कहा-11वीं पास है ।
‘बस, तब तो माँ ! वह अभी बच्ची ही होंगी।’ मैंने कहा ।
माँ ने कहा – पर क्या करोगे मौसी की जोर और तुम्हारे ‘1’ दिनी भैया में मटुकी प्रभाव रहा होगा ।
मैं समझ गया । आगे कुछ नहीं कहा । माँ की वार्त्ता को शिरोधार्य कर गया ।
………आज वही भैया सामने थे , साथ में उनकी नयी नवेली दुल्हिन भी , जो कि खुद ‘माँ ‘ बनने की तैयारी में मुस्काये ओठ को पिंक कलर्स सहेजे फैलाये थी । मेरी तथोक्त मौसी साथ में थी , इसलिए मैंने ‘1’ दिनी भैया को प्रणाम कहा । तब तक ‘मौसी’ जो साथ में थी , कह बैठी ‘रे मनु, इ भौजी छै। एकरो परनाम
प्रणाम करि ले ….. ।’
मैंने कहा- अच्छा प्रणाम !
पर ‘मौसी’ ने तपाक से कह दी- आज कल’र बच्चों सब’क कोई संस्कार ही नय छय । भाभी’क पाँव छूकर प्रणाम करना ही भूल गए हैं ……..!!!
अब, गुस्सा मुझे आ रहा था कि 6 साल छोटी और मात्र 11वीं पास लड़की — जो मुझसे उम्र और पढ़ाई में काफी पीछे है, सिर्फ दूर के रिश्ते के एक दिनी बड़े ‘भैया’ से विवाह कर किस तरह से रिश्ते में बड़े होकर पैर छुआई जैसे पूज्य बन जाती हैं । ….. दुहाई हो महाराज, इस अंधेर नगरी में यह कैसी अंधेर रिश्तेदारी है, महाराज !
इससे अच्छा असाक्षर ही रह जाता, ताकि कोई संस्कार की दुहाई तो नहीं न देता !