लघुकथा : स्किन एलर्जी
“भैया ! जरा कुछ कान के बुंदों के डिजाइन दिखाना।” लड़की ने सुनार से कहा। सुनार ने भार तोलकर एक ट्रे में बुंदों की कुछ जोड़ी उन माँ-बेटी के सामने रख दीं।
बेटी एक-एक कर माँ के कानों के पास लेजाकर बुंदे देखती और शीशे में माँ को दिखाकर पूछती “ये कैसे लग रहे हैं?”
“सुन्दर हैं! लेकिन किसके लिए ले रही हो?”
“मेरी पहली कमाई से आपके लिए, और किसके लिए?” बेटी मुस्कुरा दी।
“नहीं, मुझे नहीं चाहिए। अपने लिए ले लो। वैसे भी क्या तू नहीं जानती, मुझे नहीं सुहातीं अब ये सब चीजें, मुझे तो इनसे स्किन एलर्जी हो जाती हैं।” माँ ने सफाई दी।
“हां! माँ सब जानती हूँ। सेमिस्टर-दर-सेमिस्टर मेरी फीस भरते हुए तुम्हारी स्किन एलर्जी क्यों बढ़ती चली गई।”
— नीता सैनी