मैं कैसे मनाऊँ दिवाली?
मैं कैसे मनाऊँ दिवाली?
जब वो खेल रहे है होली!
मैं कैसे पटाख़े जलाऊँ?
जब वो खून से बना रहे हैं रंगोली!
मैं कैसे शिरा-पूरी खाऊँ?
जब वो सरहद पे शिष कटा रहे हैं!
मैं कैसे मिठाईयाँ बाँटुं?
जब वो मिट्टि में मिल रहे हैं!
मैं कैसे नव-वस्त्र खरीदुं?
जब वो तिरंगे में लिपट रहे हैं!
मैं कैसे अब रात को सोऊँ?
जब वो पहेरेदारी कर रहे हैं!
मैं कैसे नव-वर्ष की बधाई दुं?
जब शहिद के जनाजे उठ़ रहे हैं!
माँ कैसे अब मुस्कराएगी?
जब त्योहारों में बेटे रो रहे हैं!
— मयूर जसवानी