वापसी
“कुछ भी नही बदला सात वर्ष में, यहां तक कि मेरे हाथ का लगाया बगीचा भी।” सोचते सोचते रवि ने ‘डोर बैल’ पर हाथ रख दिया।
इतने अर्से बाद अचानक पति को सामने देखकर निशी समझ नही सकी कि वो क्या कहे, खामोशी से रास्ता दे अंदर आ गयी।
चाय से खाने तक दोनो के बीच अधिकाशंत: सन्नाटा ही पसरा रहा। हाँ, वर्षो से पिता की कमी महसूस करती बेटी की आँखो में जरूर इक मोह का दीया जलने लगा था।
“निशी! मैं घर वापिस लौटना चाहता हूँ।” आखिर चलते हुये रवि ने हिम्मत की।
निशी के जहन में अनायास ही वर्षो पहले रवि की कही बाते शोर मचाने लगी। “…….. निशी, मैं ‘ग्रीन कार्ड’ का ये ‘चान्स’ ‘मिस’ नही करूँगा। मैं जा रहा हूँ मारिया के साथ, रही तुम्हारी बात! मेरा घर, बेटी, मेरा नाम सब कुछ तो तुम्हारे साथ रहेगा ही ना …….।” सोचते सोचते ही निशी का चेहरा कठोर हो गया।
“रवि, एक पिता बनकर तुम जब चाहो अपने घर में लौट सकते हो। लेकिन एक पति के रूप में तुम्हारी वापसी अब सम्भव नही।” कहते हुये निशी पलट चुकी थी।