गीत/नवगीत

गीत : आया दीपों का पर्व निराला

आया मन भावन दीपों का पर्व निराला
प्रकाश पुंज आलोकित हो, खुशियों का अमृत प्याला
तेरे प्यार में प्रतिपद रचने को ये मन करता
सुख-समृद्धि नव आशाओं से घर भर दे लक्ष्मी माता !
.. आया मन ………..
कष्ट प्रमाद , विषाद की हरिणी
आशा , उल्लास , चेतना की तरभरणी ,
दया , सौभाग्य , स्नेह की आँखो में तेरी छाया
तृण तृण में व्याप्त तेरी मन मोहक माया !
… कष्ट प्रमाद….
दीपों से सजी राहें आज , करते तुझे नमन है
दिल अॉगन में आकर सबके, महका दे चमन है,
पुष्प कुंजों से सजे हैं वन्दन द्वार के
दिल मांगता है मेरा स्नेहा शीष प्यार के !
…. दीपों से सजी…………. !
भेज रहा हुं तुम्हे माँ बनाकर वाक्यावली
आँचल में भर देना उनके सौगातों की पुष्प कली
विचारों को उनके सत्यापथ प्रेरणाओं से भर देना
आँखों में नव उमंग लिये प्यार का झरना वर्षा देना

— संतोष पाठक !

संतोष पाठक

निवासी : जारुआ कटरा, आगरा