उम्मीद
जमाने को आजमाने का हुनर रखती हूँ
कांटो पे भी मुस्कुराने का जिगर रखती हूँ
खुशियो के रौशनी की नहीं तलाश, इसलिए
दामन में कभी शाम तो कभी सहर रखती हूँ
सवार रहती हूँ सदा उम्मीद की नाव पे
हूँ नदी पर सपनो का सागर रखती हूँ
नहीं समझता कोई अश्कों की ज़ुबान यहाँ
छुपा के दुनिया से मैं दीदा-ए-तर रखती हूँ
मेरे लहज़े में कड़वाहटें तो होंगी ही
जुबान पर मैं अपनी सच का जहर रखती हूँ
सिर्फ दोस्तों से ही दुनिया में रौनक नहीं आती
इसलिए दुश्मनो का साथ लाव लश्कर रखती हूँ।