कहानी

कहानी : ब्लड कैंसर

मोबाइल की रिंग बजते ही आँखें मूंद कर लेटे, अभय की तन्द्रा टूटी l वह कुछ समय पहले ही ऑफिस से लौटा था l हेल्लो अभय …..’सुना तुमने आशीष चंडीगढ़ के एक हॉस्पिटल में एडमिट है, उसे ब्लड कैंसर  डिटेक्ट हुआ है l’ फ़ोन उठाते ही दुसरी ओर से एक परिचित मित्र एक सांस में ही सब बोल गया था l अभय एक झटके के साथ उठकर बैठ गया l क्या बात कर रहे हो भाई ..! एक हफ्ते बाद तो उसकी शादी है l अभय को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था l कुछ देर के बाद दुसरी ओर से फ़ोन कट गया l उसका दिलो – दिमाग ये मानना ही नहीं चाह रहा था कि यह खबर सच है l आखिर एक हँसते-खेलते और तंदरुस्त दिखने वाले इंसान को ब्लड कैंसर …? अभी उसकी उम्र ही क्या है …महज 31 वर्ष ….! अभय अन्दर तक उद्विघन हो गया था l उसकी उंगलियाँ अपनेआप ही आशीष का नंबर मिलाने के लिए मोबाइल के कीपैड पर चलने लगी l मगर यह क्या,,,उसका मोबाइल तो स्विच ऑफ बता रहा है !

उसने ऑफिस के कई दोस्तों से अपनी मनोस्थिति शांत करने और इस खबर की पुष्टि करने हेतु फ़ोन पर बात की l खबर की पुष्टि तो सबने की, मगर अधिकांश के पास ज्यादा बात करने का समय नहीं था l यह शायद हर किसी के लिए गंभीर विषय नहीं ! अभय ने महसूस किया कि बक्त आगे निकल जाता है तो लोग व्यावहारिक हो जाते हैं l उस रोज उसकी आँखों में नींद नहीं थी l रह – रह कर वह बिस्तर पर करवट बदलता रहा l आशीष का चेहरा बार – बार  उसकी आँखों के सामने आ जाता l अभी कुछ दिन पहले ही तो उसे आशीष का कॉल आया था l कितना खुश था वह ! बता रहा था मेरी शादी तय हो गई है, उसमें जरुर आना l उसकी शादी की तय तिथि से महज एक हफ्ते पहले, इतनी भयावह खबर पाकर अभय हतप्रभ और बेचैन था l

रात के ग्यारह बज चुके थे l कमरे की लाइट बुझी हुई थी l पत्नी और छः साल की बेटी गहरी निद्रा में थे l अभय सोने का उपक्रम कर रहा था l नींद जैसे कहीं गुम हो गई हो l विचारों में खोये हुए वह दो साल पीछे लौट जाता है l फरबरी के महीने के अंतिम दिन थे, मगर शिमला की ठण्ड अपने पुरे चरम पर थी l कंपनी के ऑफिस में जॉइनिंग देने कई अभ्यर्थी पहुंचे थे l पूरा दिन इसी में बीत गया l सभी को सप्ताह भर की ट्रेनिंग की लिए शिमला में ही रुकना था l उन्हें कंपनी के गेस्ट हाउस में कमरे दे दिए गए l अगले दिन प्रशिक्षण सत्र मुख्य अतिथि के अभिभाषण और सबके परिचय से प्रारंभ हुआ l इसी तरह कुछ दिन बीते और सभी अभ्यर्थी जो अब सहकर्मी थे, उनके बीच बातचीत और जान – पहचान शुरू हुई l ऊँची कद – काठी का आशीष चेहरे पर हमेशा मुस्कान लिए रहता था l आँखों पर पहना चश्मा, उसे अपनी उम्र से अधिक परिपक्व दिखाता था l अभय और आशीष में सामान्य बातचीत होती रहती l प्रशिक्षण कार्यक्रम यूँ ही आगे बढ़ता रहा l जॉइनिंग के 15 – 20 दिन बाद सभी को दिल्ली जाना था l वहां पर तीन अलग – अलग संस्थानों में प्रशिक्षण कार्यक्रम संम्पन होना तय था l

समय इसी तरह से बीतता रहा l शिमला से वॉल्वो बस शाम के करीब 6 बजे दिल्ली के लिए चली l सुबह के 3 बजे के करीब बस कश्मीरी गेट बस अड्डे पर पहुँच गई l यहाँ से सभी को अलग – अलग  जगह पर जाना था l 4 – 5 लड़कों का एक ग्रुप नॉएडा के लिए ऑटो पकड़कर निकल पड़ा l अभय और आशीष भी इसी ग्रुप में थे l संस्थान के हॉस्टल में दो लोगों को एक कमरे को शेयर करना था l संयोगवश उन दोनों को एक साथ रूम मिला, जिसमें कि दो चारपाईयां लगी हुई थी l अगले दिन प्रशिक्षण शुरू होने तक अन्य अभ्यर्थी भी पहुँच चुके थे l 35 की उम्र पार कर चुके अभय के लिए जैसे कॉलेज के दिन वापिस लौट आये थे l वह संभवतः पुरे ग्रुप में सबसे अधिक उम्र का था l अन्य साथियों की हंसी – ठिठोली में वह खुद को असहज सा महसूस करता l बक्त के थपेड़ों को सहते हुए अभय के व्यक्तित्व में गंभीरता आ गई थी l

आशीष उसकी मनोदशा को अच्छे से समझने लगा था l खुशमिजाज और साफ़ ह्रदय वाले आशीष को  देखकर लगता था कि उसने शायद ही कभी जीवन में किसी का दिल दुखाया हो ! धीरे – धीरे  उन दोनों में आपसी समझ बढ़ने लगी l गर्मी की प्रचंडता बढ़ी तो मछरों ने भी रात को सोना दूभर कर दिया था l हालांकि हॉस्टल का एक कर्मचारी मछरों को मारने के लिए रोज किसी दवाई का छिड़काव करके जाता, मगर यह दवा शायद मछरों के लिए खुराक का काम करने लगी थी l वो दोनों एक शाम को मार्केट से अपने लिए मछरदानियां खरीद लाये l ट्रेनिंग इसी तरह से बारी – बारी से अलग-अलग संस्थानों में चलती रही l आशीष और अभय सभी जगह रूमेट ही रहे l आशीष कभी-कभी अपने घर के बारे में बताता l पहाड़ी प्रदेश के ठन्डे इलाके से तालुक रखने वाले आशीष के पिता जी ने जीवन के संघर्षों से गुजरते हुए उसे बड़ा किया l माँ शुरू से ही धार्मिक विचारों की थी  l घर में एक छोटी बहन है, जो अभी पढाई कर रही है l आशीष कभी – कभी  परेशान भी हो जाता, जब कभी भी सुनीता से उसका मामूली बातों पर झगड़ा हो जाता था l आशीष और सुनीता एक – दुसरे को बहुत चाहते थे l अभय शादी – शुदा था , इसीलिए अपने जीवन के अनुभवों को आशीष से अक्सर साँझा करता l आशीष में अक्सर उसे अपने छोटे भाई का अक्स नजर आता l

“पापा मुझे प्यास लगी है l” छः साल की बेटी उनींदी सी होकर बोल उठी l ख्यालों में खोया हुआ अभय एकदम से वर्तमान में लौट आया l वह उठा और लाइट ऑन करके उसने बेटी को उठाकर पानी पिलाया l सामने दीवार पर लगी घड़ी रात के एक बजा रही है l पानी पिलाकर वह बेटी को बापिस सुला देता है l लाइट ऑफ करके वह  बाहर बालकनी में आ गया l गर्मी का मौसम है, मगर दिन में बारिश होने से हवा में हल्की ठंडक है l स्ट्रीट लाइट की रौशनी में आसपास के दृश्य साफ़ दिखाई पड़ रहे हैं l उसकी नज़र सामने कॉलोनी के मुख्य द्वार पर पड़ती है l सिक्योरिटी गार्ड कुतों और आवारा पशुओं को डंडा दिखाकर भगा रहा है l

बालकनी पर पड़ी कुर्सी पर वह पीठ टिका लेता है l मन – मस्तिष्क अभी भी बोझिल से हैं l उसे याद आता है जब दो – तीन दिन की छुट्टियाँ आई थी, तो फरीदाबाद वाले संस्थान से आशीष, सुनीता से मिलने चंडीगढ़ गया था l लौटकर आया तो बहुत खुश था l अभय कभी ऐसे ही मजाक में पूछ लेता कि मुलाकात कैसी रही तो वह झेंप सा जाता l सुनीता की गिफ्ट की गई पानी की बोतल को वह हमेशा संभाल कर रखता l मेस में खाना खाने जाते, तो हाथ में पकड़ी बोतल को देखकर अन्य साथी मजाक करने लगते l वह भी इस हंसी – मजाक का मुस्कुराहट के साथ जवाब देता, आखिर यह आशीष के अजीज साथी की निशानी थी l वह निकट भविष्य में उसकी जीवन संगिनी होने वाली थी l वे दोनों मोबाइल पर अक्सर चैटिंग करते रहते l

अभय को पीठ पर अकड़न सी महसूस होती है l वह पुनः अपने आप को कुर्सी पर व्यवस्थित करता है l उसकी नज़र कलाई पर बंधी घड़ी पर पड़ती है l रेडियम लगी घड़ी की सुईयां रात के 2.30 बजा रही हैं l आखों में हल्की जलन हो रही है, मगर नींद नाम मात्र भी नहीं है l आँखों को आराम देने के लिए वह पलकें बंद कर लेता है l टाँगे सीधी कर उसने सामने पड़े स्टूल पर रख दी l मस्तिष्क के कैनवास पर पुनः आशीष का चेहरा उभर आता है l दिल्ली में तीनो संस्थानों पर ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है l यह सबकी वहां पर आखिरी रात है l सभी को पोस्टिंग आर्डर मिल चुके हैं l ये विछोह की घड़ी है l ग्रुप के साथी एक – दुसरे के साथ चित्र खिंचवा रहे हैं l उस रात सभी काफी देर तक जागते रहे थे l अभय और आशीष एक ही प्रदेश के होने के कारण वापसी के लिए एक ही बस पकड़ते हैं l पुरे सफर में उनके बीच बातें चलती रही l दोनों ही घर जाने को लेकर उत्साहित थे l वे काफी समय बाद अपने-अपने परिवारों से मिलने वाले थे l उनकी पोस्टिंग अलग – अलग  जगह पर हुई थी l नौकरी की व्यस्तताओं में वे अपने – अपने  कार्यक्षेत्र में व्यस्त हो गए l शुरूआती दौर में तीन – चार दिन, हफ्ते और फिर महीनों के अन्तराल में फ़ोन पर बात होने लगी l

कुर्सी पर लेटे हुए कंधे पर किसी के हाथ रखने की अनुभूति हुई l ‘आप यहीं पर सोये रहे रात भर ?’ यह पत्नी की आवाज थी l अभय अचानक से उठा ! विचारों में खोये हुए कब उसकी आँख लग गई थी, उसे खुद ही याद नहीं l बाहर सुबह का उजाला दस्तक दे रहा था l कलरव करते पंछियों का शोर कानों में पड़ने लगा है l यह सुबह हर रोज की तरह ही है l प्रकृति अपने नियम कभी नहीं बदलती l वह सोचने लगा कि बक्त कभी भी किसी के लिए नहीं रुकता l आशीष पर क्या बीत रही होगी ? उसके परिवार का क्या हाल होगा ? और सुनीता,,,,वह बेचारी तो निष्प्राण हो गई होगी, यह सब जानकर ! सामने की पहाड़ी पर पवित्र देवढांक गुफा की ओर उसने श्रधा स्वरुप हाथ जोड़ दिए और मन ही मन आशीष की सकुशलता के लिए प्रार्थना करने लगा l पत्नी बालकनी में ही चाय बनाकर ले आई l रात भर सो न पाने के कारण अभय की आँखें सुर्ख लाल हो गई थी l

उसने मोबाइल उठाया और काफी कशमकश के बाद जैसे – तैसे आशीष के करीबी दोस्तों, रिश्तेदारों से पूछताछ कर उससे फ़ोन पर सम्पर्क साध लिया l वह अस्पताल के एक स्पेशल बार्ड में उपचाराधीन था l हेल्लो अभय जी ‘मैं आशीष बोल रहा हूँ l’ मेरी शादी अब स्थगित हो गई है, माफ़ कीजियेगा आपको सूचित नहीं कर पाया l आशीष ने फ़ोन उठाते ही अबिलम्ब बोल दिया था l कोई बात नहीं भाई , लेकिन इतनी बड़ी बात हो गई और आपने मुझे न बताकर, पराया कर दिया l अभय द्रवित होते हुए तुरन्त ही बोल पड़ा था l मानो कहना चाहता हो ‘दोस्त तुम्हारी शादी से ज्यादा मुझे तुम्हारी फ़िक्र हो रही है l’ मगर उसके शब्द भीतर ही कहीं दम तोड़ गए थे l गिले – शिकवों और शिकायतों के दौर से होते हुए बातचीत आगे बढ़ी l उसकी बातों से उसकी बीमारी का जरा भी अहसास नहीं हुआ l वह आशीष की हिम्मत और जिजीविषा देखकर हैरान था l उसके बात करने के लहजे से पहले जैसा ही जोश और आत्मविश्वास झर रहा था l अभय को विश्वास हो गया कि उसका दोस्त एक बहादुर योद्धा है और वह अपनी इस बिमारी को भी जरुर हरा देगा l 15 – 20 मिनट की उस बातचीत में अभय ने आशीष को ढाढस बंधाया और अस्पताल में उसे देखने आने को बोल कर, फ़ोन रख दिया l उसके भीतर उठ रहा ज्वारभाटा अब थम रहा था l दूर पूर्व के क्षितिज पर सूर्योदय के पहले की लालिमा दिखाई देने लगी थी l कुछ ही पलों में सूर्य की किरणों का प्रकाश चहुँ ओर फ़ैल गया l

-मनोज चौहान 

मनोज चौहान

जन्म तिथि : 01 सितम्बर, 1979, कागजों में - 01 मई,1979 जन्म स्थान : हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के अंतर्गत गाँव महादेव (सुंदर नगर) में किसान परिवार में जन्म l शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग), पीजीडीएम इन इंडस्ट्रियल सेफ्टी l सम्प्रति : एसजेवीएन लिमिटेड, शिमला (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : 20 मार्च, 2001 से (दैनिक भास्कर में प्रथम लेख प्रकाशित) l प्रकाशन: शब्द संयोजन(नेपाली पत्रिका), समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, मधुमती, आकंठ, बया, अट्टहास (हास्य- व्यंग्य पत्रिका), विपाशा, हिमप्रस्थ, गिरिराज, हिमभारती, शुभ तारिका, सुसंभाव्य, शैल- सूत्र, साहित्य गुंजन, सरोपमा, स्वाधीनता सन्देश, मृग मरीचिका, परिंदे, शब्द -मंच सहित कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविता, लघुकथा, फीचर, आलेख, व्यंग्य आदि प्रकाशित l प्रकाशित पुस्तकें : 1) ‘पत्थर तोड़ती औरत’ - कविता संग्रह (सितम्बर, 2017) - अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद(ऊ.प्र.) l 2) लगभग दस साँझा संकलनों में कविता, लघुकथा, व्यंग्य आदि प्रकाशित l प्रसारण : आकाशवाणी, शिमला (हि.प्र.) से कविताएं प्रसारित l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय – महादेव, तहसील - सुन्दर नगर, जिला - मंडी ( हिमाचल प्रदेश ), पिन - 175018 वर्तमान पता : सेट नंबर - 20, ब्लॉक नंबर- 4, एसजेवीएन कॉलोनी दत्तनगर, पोस्ट ऑफिस- दत्तनगर, तहसील - रामपुर बुशहर, जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश)-172001 मोबाइल – 9418036526, 9857616326 ई - मेल : [email protected] ब्लॉग : manojchauhan79.blogspot.com