दोस्त (3 मुक्तक)
1
दोस्त फरिश्ते होते हैं, बाकी सब रिश्ते होते हैं.
गरिमा जब खो देते हैं, तब रिश्तों को हम ढोते हैं.
रखे नहीं महत्वाकांक्षा दे साथ घड़ी कैसी भी हो,
दोस्त वही नि:स्वार्थ रहें ना बीज बैर का बोते हैं.
2
वो दोस्त क्या जिसको दोस्ती पर फख्र नहीं होता.
दोस्तों के बीच दोस्ती का गर जिक्र नहीं होता.
तुम जिन्दा हो इस मुगलाते में न रहना ‘आकुल’,
मुरदों को करवट बदलने का फिक्र नहीं होता.
3
वही जानो दोस्त जिसमें दोष तक न हो.
दोष मन में दुश्मन है इसमें शक न हो.
दिखती नहीं रिश्तों में कशिश अब ‘आकुल,’
दोस्त के मीजान पर कभी भी शक न हो.