ग़ज़ल
अभी अंदाज में रखनी है हमको सादगी थोड़ी।
फकत है काम ज्यादा बच गई है जिंदगी थोड़ी ।
जमाने भर की दौलत साथ कब जाती है दुनिया से
कजा आये मयस्सर हो मुझे बस सरजमीं थोड़ी ।
मुहब्बत को इबादत जानकर हमने किया हरदम
सनम में आ गई है आजकल बस बेदिली थोड़ी ।
मुझे हर जाम में दिखती है सूरत आपकी क्यूँकर
गमे फुरकत से डर के कर रहा हूँ मयकशी थोड़ी ।
खुदाया ने तुझे बख्शी है वो सूरत मेरे हमदम ।
चुराकर चाँद तुमसे ले गया था चांदनी थोड़ी ।
— धर्म पाण्डेय