गीतिका/ग़ज़ल

आंसू

हमारी ज़िन्दगी में गम और ख़ुशी के बादल घने है
इन्ही लम्हों को बंयाँ करने के लिए आंसू बने है
इन आंसुओं की ज़माने में कीमत बोहोत है
जब ज़ुबाँ नाकाम हो तभी इनकी ज़रूरत है
ये आंसू हमारे बड़े मोहतरम होते है
क्योंकि इनसे ही बा-वज़ू हम होते है
ये इबादत के भी काम आते है
क्योंकि ये सीधा हमे रब से मिलते है
वैसे तो ये सिसकी से भी निकल जाते है
मगर इनमे बड़े-बड़े पत्थर भी पिघल जाते है
ऐसा नहीं की ये सिर्फ इंसानो के काम आते है
इनमे अगर बददुआ भी शामिल हो
तो ये मुल्क तक बहा ले जाते है

तो एतियात करें ,इन्हें फ़िज़ूल ना बहाये
इनमे बोहोत ताकत है
क्योंकि ये इंसान को खुद की इक नेमत है

(मोहतरम – आदर्णीय
बा-वज़ू पवित्र )

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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