लघुकथा

भूखे भजन ना होई गोपाला !

गाँव में सत्संग चल रहा था । बाबा कुशलानंद के प्रवचन लोगों के कानों में मिश्री सा घोल रहे थे । नारायण भी अति सुन्दर प्रवचन का श्रवण करने के बाद सुश्राव्य भजनों का आनंद ले रहा था ।
अचानक उसे समीप के घर के सामने लगा बीजली का बल्ब रोशन होता हुआ दिखा । इसका सीधा सा मतलब था कि विगत तीन दिनों से इस इलाके से रूठी हुयी बीजली पुनः आ गयी थी । अबकि कब तक रहेगी कोई निश्चित नहीं था ।
नारायण जाने के लिए उठ खड़ा हुआ । पडोसी हरिचंद काका ने टोकते हुए कहा ” अरे ! कहाँ जा रहा है इतना बढ़िया भजन छोड़कर ? ”
” काका ! खेतों में गेहूं सुखने के कगार पर हैं और मैं यहाँ भजन करूँ ? ना काका ना ! मैंने यह भी तो सुना है ‘ भूखे भजन ना होई गोपाला ! ” कहकर जवाब की प्रतीक्षा किये बीना नारायण चल पड़ा था सीधे अपने खेतों की ओर ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।