गीत : माँ
मेरे बचपन में मेंरी माँ मुझको खूब खिलाती थी।
सच्ची झूठी कथा कहानी मुझको रोज सुनाती थी।
मेरे बस्ते में केला अमरुद कतलिया सत्तू की,
पापकार्न मुम्फली खिलाकर के हरदम हर्षाती थी।।
अम्मा जरा देख तो ऊपर कविता जिन्हें सुनाते थे।
अपने सारे दर्द और दुःख जिससे हम कह पाते थे
अपनी सारी मक्कारी हम हंस हंस जिसे बताते थे।,
आज खो दिया उस माँ को जिससे अक्सर डर जाते थे।
कापी पेन्सिल पाटी बस्ता लेकर कालेज जाते थे।
वापस आकर देशी घी की चुपड़ी रोटी खाते थे।
गिनती और पहाड़ा में हम जिनसे अक्सर पिटते थे।
आज छोड़कर चली गयी माँ नयन नीर भर आते है।
— नीरज अवस्थी