लघुकथा

लघुकथा : घुन

“बेटे की शादी हुए महीनें से ऊपर हो गए थे पर बहू कभी मेरे साथ बैठी ही न| न ही कभी मेरे कमरे में चाय लेके ही आई, हाल पूछना तो बहुत दूर की बात है|” बुखार में तपती हुई कमला क्रोसिन उठा के खाती हुई बुदबुदायी|
रसोई में तो बिजली की तरह आती है और तूफ़ान की तरह लौट जाती है|
जब देखो अपने भाभी, भाई और माँ से फ़ोन पर घंटों बात करती रहती हैं! घर में कुछ भी बात हो तुरंत मायके खबर पहुँचा देती है| पिछले हफ़्ते जब गैस खत्म हो गयी थी तो भाई को फोन कर दिया| उसके भाई को भी देखो तुरंत सिलेंडर लेके आ गया था|
परसो माँ को खांसी आ रही थी तो तुरंत मायके जाने को तैयार हो गयी थी|
कल तो मैंने अपने कानों से सुना, अपने सहेली से मेरी और मेरे बेटे की शिकायत करके खिलखिला रही थी|
एक बार जब मैं नयी नवेली बहू बनकर अपनी ससुराल आई थी तो मैंने अपनी माँ से ससुराल में बने मोटे चावल को लेकर शिकायत करी थी| माँ ने तुरंत एक कुंटल बासमती चावल भेज दिया था|
अम्मा ने अपने पास बुलाकर समझाया था| ‘बहू माँ के घर, ससुराल की हर छोटी-बड़ी बात नहीं पहुँचाते है| जो लड़कियां मायके का मोह नहीं त्याग पातीं हैं और ससुराल के नेह बंधन में नहीं बंध पातीं हैं, वह सुखी नहीं रह पातीं हैं|
मैं तो समझ गयी थी पर बहू को दो बार समझा चुकी हूँ समझती ही नहीं|
तभी बहू मोबाईल पर बात करती हुई आई- “माँ, आज सब्जी में नमक कम होने की वजह से अजय ने मुझे डांटा, मैं आ रहीं हूँ घर, मुड बहुत खराब है मेरा|”
बहू की बातें सुनते ही कमला ख्यालों से बाहर आकर बुदबुदाई “अंधकारमय भविष्य की आहट हैं यह| जो बहू की माँ को नहीं सुनाई पड़ रही हैं|”

— सविता मिश्रा 

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|