मां – कुछ दोहे
बहन विदेशी-बंधु से, करे फोन पर बात।
अम्मां अंधी हो गई, याद करे दिन -रात।।
जिनके घर में हो रही, नोटों की बरसात।
उनकी मां फुटपाथ पर, खाती बासी भात।।
तीन पूत त्रयलोक के, दिए त्रिलोकीनाथ।
वह मां आश्रम में रहे, दुनिया कहे अनाथ।।
भूखी -प्यासी मां रहे, तनिक न उनको ध्यान।
घर में उनके पल रहे, महंगे -महंगे श्वान।।
दान -पुण्य करता फिरे, जाकर गंग नहाय।
चरण धूलि मां की नहीं, लेता शीश लगाय।।
मां को कभी न मानिए, अपने ऊपर भार।
मां के ही आशीष से, कोठी, बंगला, कार।।
मां से ही घर स्वर्ग है, बिन मां नरक समान।
मां जैसा रिश्ता नहीं, दूजा ‘राज’ जहान।।
— राजकुमार धर द्विवेदी
वरिष्ठ उप -संपादक, नईदुनिया, रायपुर, (छत्तीसगढ़ ),
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