लघुकथा : चूहों की पूंछ
एक मोटे बिल्ले को देखकर चूहे भागने लगे। बिल्ले ने उन्हें रुकने का आग्रह करते हुए कहा, ” रुकिए -रुकिए, मेरी बात तो सुनिए, भागिए नहीं। यकीन मानिए, मैं किसी को अपना शिकार नहीं बनाऊंगा। ”
” तो क्यों आए हो ?” चूहों के सरदार ने पूछा।
” बस एक ऐसा काम करने, जिसमें हम दोनों की भलाई है।”
” कहो, क्या कहना है ? किसमें हमारी भलाई है? ”
” भलाई इसमें है कि तुम सब अपनी -अपनी पूंछ काटकर मुझे दे दो।
” पूंछ क्या करोगे ?”
” पूंछ दिखाकर दूध -मलाई खाऊंगा।”
” कैसे ? मैं समझा नहीं।
” महाराज चूहों के उत्पात से परेशान हैं। उन्होंने मुझे चूहों को मार कर प्रमाण के तौर पर पूंछ दिखाने का काम सौंपा है। लेकिन मैं किसी चूहे की जान नहीं लेता। बस पूंछ दिखा कर मौज़ कर रहा हूं।”
— राजकुमार धर द्विवेदी