लघुकथा : विकास
मंत्री के आलीशान बंगले का खूबसूरत बाग। एक नन्हे पौधे ने बगल के साथी से पूछा-‘यहां आसपास कोई जंगल भी है क्या ?’
‘कई हैं। क्यों ?’
‘बस ऐसे ही, देखने का मन करता है। ”
‘ क्या करोगे देखकर ?’
‘ देखूंगा कि वहां कितनी रौनक है, जंगल कितना विकसित है।’
‘ कहीं जाने की जरूरत नहीं। बस इतना जान लो कि हम जंगल से गमले में सिमट गए, यही विकास है।’
— राजकुमार धर द्विवेदी