“500 रूपये और 1000 रूपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानि ये मुद्राएँ कानूनन अमान्य होगी. पुराने नोट 10 नवंबर से 30 दिसम्बर तक अपने बैंक या डाक घर के खाते में बिना किसी सीमा के जमा करवा सकते है. आपकी धन राशि आपकी ही रहेगी और बाकि करेंसी नियमित रहेगी.” की खबर ने चौका दिया । भ्रस्टाचार, नकली करेंसी रोकने आदि हेतु कारगार कदम है किन्तु व्यवहारिक परेशानी का सामना आम लोगो से लेकर खास लोगो करना पड सकता है। टीवी की खबरे प्रसारित हो रही और फेसबुक -वाट्सअप पर इसके त्वरित समाचार के लिए और समाधान हेतु घर परिवार की नजरें ताजे समाचारों हेतु मानों पलक पावड़े लिए बैठी हुई है ।
तभी घर के अंदर से पति महोदय को पत्नी ने आवाज लगाई – ‘नहाकर बाजार से सब्जी -भाजी ले आओ’. किन्तु पति महोदय को लगा फेसबुक का चस्का । वे फेसबुक के महासागर में तैरते हुए मदमस्त हुए जा रहे । बच्चे पापा से स्कूल ले जाने की जिद कर रहे थे की स्कुल में देर हो जाएगी । काम की सब तरफ से पुकार हो रही मगर जवाब बस एक मिनिट । नाइस, वेरी नाइस की कला में माहिर हो गए थे। मित्र की संख्या में हजारों इजाफा से वे मन ही मन खुश थे किन्तु पडोसी को चाय का नहीं पूछते इसका यह भी कारण हो सकता उन्हें फुर्सत नहीं हो । दोस्तों में काफी ज्ञानी हो गए थे । मित्र भी सोचने लगे कि यार ये इतना ज्ञान कहा से लाया इससे पहले तो ये हमारे साथ दिन भर रहता और हमारी देखी हुई फिल्म की बातें समीक्षा के रूप में सुनता रहता था ।
एक दिन मोहल्ले वाले मित्रों ने सोचा इनके घर चलकर पता किया जाए ठण्ड में गरमागरम चाय भी मिल जायगी । मित्रों ने घर के बाहर लगी घंटी दो चार बार बजाई । अंदर से आवाज आई जरा देखना कौन आया है। उन्हें उठ कर देखने की भी फुरसत नहीं मिल रहे थी । दोस्तों ने कहा- यार आज कल दिखता ही नहीं क्या बात है। हमने सोचा कही बीमार तो नहीं हो गया हो इसलिए खबर लेने और करेंसी 500 ओर 1000 रूपये बंद होने की खबर देने भी आये है। पता नहीं दिख नहीं रहा तो शायद खबर मालूम न हो ।
घर में देखा तो भाभीजी वाट्सअप में अपने रिश्तेदारों को त्योहारों की फोटो सेंड करने में सर झुकाये तल्लीन और बच्चे भी इसी मे लगे थे । अब ऐसा लग रहा था की फेसबुक और वाट्सअप में जैसे मुकाबला हो रहा हो । घर के काम का समय मानो विलुप्तता की कगार पर जा खड़ा हुआ हो । सब जगह चार्जर लटक रहे थे । मोबाइल यदि कही भूल से रख दिया और नहीं मिला तो ऐसा लगता जैसे कोई अपना लापता हो गया हो और दिमाग में चिड़चिड़ापन, हिदायते, उभर कर आना मानों रोज की आदत बन गई हो । चार्जिग करने के लिए घर में ही होड़ होने लगी । बैटरी लो हो जाने से सब एकदूसरे को सबुत पेश करने लगे। वाकई इलेक्ट्रॉनिक युग में प्रगति हुई किन्तु लोग रिश्तों और दिनचर्या में काम ध्यान देकर अधिक समय और सम्मान फेस बुक और वाट्सअप और मोबाइल पर केंद्रित करने लगे है ।
उधर 500 और 1000 हजार की करेंसी बदलवाने की चिंता और नए मिलने वाले नोटों का इंतजार जिससे घर के रुके काम सुचारू रूप से गति पकड़ले । गांव -शहर में करेंसी बदलवाने को ले जाते हुजूम से बैंक और डाकघर चर्चित हुए वही कोई परिचित किसी से पूछे की आप कहा हो। वो एक ही पता बता रहा है बैंक /डाक घर में हूँ ।
— संजय वर्मा “दॄष्टि”